नई दिल्ली, 30 जुलाई (आईएएनएस)। 31 जुलाई की तारीख भारत के संचार इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। यही वह दिन था, जब भारत में मोबाइल फोन पर पहली बार दो लोगों ने बात की थी। इस फोन कॉल से भारत में संचार क्रांति की शुरुआत हुई।
31 जुलाई 1995 को कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने नई दिल्ली के संचार भवन में बैठे केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम को पहली मोबाइल कॉल की। यह कॉल न केवल दो व्यक्तियों के बीच एक संवाद था, बल्कि यह भारत में संचार क्रांति की शुरुआत का प्रतीक थी, जिसने देश को विश्व के सबसे बड़े टेलिकॉम बाजारों में से एक बना दिया। 30 साल बाद, आज भारत में 1.2 अरब से अधिक मोबाइल उपयोगकर्ता हैं और यह संख्या हर दिन बढ़ रही है।
1990 का दशक भारत के लिए परिवर्तन का दौर था। आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के साथ, देश में नई तकनीकों को अपनाने की प्रक्रिया तेज हो रही थी। उस समय तक भारत में संचार का मुख्य साधन लैंडलाइन टेलीफोन था, जो केवल बड़े शहरों और चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित था। लैंडलाइन कनेक्शन लेने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता था, और ट्रंक कॉल के जरिए दूर-दराज के लोगों से बात करना एक जटिल और महंगी प्रक्रिया थी। ऐसे में मोबाइल फोन का आगमन एक क्रांतिकारी कदम था।
1994 में, पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने उद्योगपति भूपेंद्र कुमार मोदी से मुलाकात की। इस मुलाकात में बसु ने इच्छा जताई कि कोलकाता देश का पहला ऐसा शहर बने, जहां मोबाइल नेटवर्क स्थापित हो। भूपेंद्र कुमार मोदी की कंपनी, मोदी कॉर्प, ने ऑस्ट्रेलियाई कंपनी टेल्स्ट्रा के साथ मिलकर 1993 में मोदी टेल्स्ट्रा की स्थापना की थी। यह कंपनी भारत में मोबाइल सेवा शुरू करने वाली पहली कंपनियों में से एक थी। इस साझेदारी ने नोकिया के साथ मिलकर कोलकाता में मोबाइल नेटवर्क स्थापित करने का काम शुरू किया और एक साल के भीतर पहली मोबाइल कॉल संभव हो पाई।
31 जुलाई 1995 को, कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में ज्योति बसु ने नोकिया 2110 हैंडसेट के जरिए दिल्ली के संचार भवन में बैठे सुखराम को कॉल की। यह कॉल मोदी टेल्स्ट्रा की मोबाइलनेट सेवा के जरिए की गई थी। इस कॉल को भारत में वायरलेस संचार के युग की शुरुआत माना जाता है। यह कॉल उस समय की तकनीकी और आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए एक बड़ा मील का पत्थर थी। उस समय मोबाइल फोन और कॉलिंग की लागत इतनी अधिक थी कि यह केवल उच्च वर्ग के लिए एक विलासिता थी। एक मिनट की आउटगोइंग कॉल के लिए 16 रुपए और इनकमिंग कॉल के लिए 8 रुपए प्रति मिनट का खर्च था। इसके अलावा, सिम कार्ड की कीमत भी हजारों में थी, जो उस समय की औसत आय के हिसाब से बहुत अधिक थी।
पहली कॉल के बाद, भारत में मोबाइल सेवा को आम लोगों तक पहुंचने में समय लगा। शुरुआती पांच सालों में केवल 10 लाख ग्राहक ही इस सेवा से जुड़ पाए थे। इसका कारण था उच्च कॉल दरें और सीमित नेटवर्क कवरेज। हालांकि, 1990 के दशक के अंत में निजी क्षेत्र की कंपनियों को टेलिकॉम सेक्टर में प्रवेश की अनुमति मिलने से स्थिति बदलने लगी। 1994 में सरकार ने सेलुलर और रेडियो सर्विस में निजी कंपनियों को लाइसेंस देना शुरू किया, जिसके तहत दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई।
2000 के दशक की शुरुआत में टेलिकॉम क्षेत्र में कई बड़े बदलाव आए। 2003 में, कॉलिंग पार्टी पेज (सीपीपी) लागू होने के बाद इनकमिंग कॉल मुफ्त हो गई, जिसने मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या में तेजी से वृद्धि की। 2008 में 3जी सेवाओं और 2012 में 4जी सेवाओं की शुरुआत ने मोबाइल इंटरनेट की पहुंच को और बढ़ाया। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव 2016 में रिलायंस जियो के बाजार में प्रवेश के साथ आया। जियो ने मुफ्त कॉलिंग और सस्ते डेटा प्लान की पेशकश करके टेलिकॉम बाजार को पूरी तरह बदल दिया। आज भारत में प्रति जीबी डेटा की कीमत मात्र 13.5 रुपए है, जो दुनिया में सबसे सस्ती है।
आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेलिकॉम बाजार है, जिसमें 1.16 अरब से अधिक मोबाइल उपयोगकर्ता हैं। 2022 में 5जी सेवाओं की शुरुआत के बाद, देश के 98 फीसदी जिलों में 5जी नेटवर्क उपलब्ध है। मोबाइल फोन अब केवल कॉलिंग का साधन नहीं रहा, बल्कि यह ऑनलाइन शिक्षा, बैंकिंग, शॉपिंग, और नेविगेशन जैसे कई कार्यों का हिस्सा बन गया है। मोबाइल क्रांति ने भारत के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को भी बदल दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल इंटरनेट की पहुंच ने डिजिटल डिवाइड को कम किया है, और डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों ने इस प्रक्रिया को और तेज किया है। आज मोबाइल फोन हर आय वर्ग के लिए सुलभ है, और यह एक स्टेटस सिंबल से आवश्यकता बन गया है।
हालांकि, मोबाइल क्रांति के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। साइबर सुरक्षा, डेटा गोपनीयता और नेटवर्क कवरेज जैसे मुद्दे अभी भी ध्यान देने योग्य हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की गुणवत्ता और डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने की जरूरत है। भविष्य में, 5जी और 6जी जैसी नई तकनीकों के साथ, भारत में संचार का परिदृश्य और अधिक उन्नत होने की उम्मीद है।