पटना, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार की राजधानी पटना से दक्षिण में स्थित मसौढ़ी का इतिहास जितना दिलचस्प है, इसका वर्तमान राजनीतिक गणित उतना ही अचूक है। एक समय था, जब इस जगह को ‘तारेगना’ के नाम से जाना जाता था, जिसका सीधा मतलब था- ‘तारों की गणना करना’। माना जाता है कि इसी पवित्र धरती पर भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने छठी शताब्दी में एक खगोल वेधशाला स्थापित की थी। मसौढ़ी में आज भी प्राचीन मणिचक सूर्य मंदिर मौजूद है।
लेकिन आज मसौढ़ी सिर्फ तारों या प्राचीन वेधशाला के लिए नहीं, बल्कि वोटों की गिनती के लिए जाना जाता है। बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से एक, मसौढ़ी सीट, पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के अधीन आती है और यह पटना जिले का एक प्रमुख उप-मंडल है।
मसौढ़ी विधानसभा सीट पर पिछले एक दशक में राजद का सिक्का चल रहा है। यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और राजद की उम्मीदवार रेखा देवी यहां की लगातार दो बार की विधायक हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में, मसौढ़ी ने एकतरफा परिणाम देखने को मिला। राजद उम्मीदवार रेखा देवी ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की उम्मीदवार नूतन पासवान को भारी अंतर से हराया था। इस चुनाव में रेखा देवी को कुल 98,696 वोट हासिल हुए थे।
यह सीट पहले ‘स्विंग सीट’ मानी जाती थी, लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों पर इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए जाने के बाद यह सीधे तौर पर राजद और जदयू के बीच वर्चस्व की लड़ाई का केंद्र बन गई। राजद की लगातार सफलता के पीछे यहां के यादव और दलित मतदाताओं का मजबूत समीकरण काम करता रहा है।
हालांकि मसौढ़ी राजनीतिक रूप से एक मजबूत गढ़ है, लेकिन जमीन पर यहां के लोगों की चुनौतियां कम नहीं हैं। मसौढ़ी मुख्य रूप से एक कृषि आधारित क्षेत्र है। इसके अलावा, स्वास्थ्य और शिक्षा यहां के दो बड़े और अनसुलझे मुद्दे हैं। मसौढ़ी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, लेकिन बड़े या विशेषज्ञ अस्पतालों की भारी कमी है। वहीं, हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या बहुत कम है, जिसके चलते अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए शहरों की ओर भेजने को मजबूर हैं।
मसौढ़ी अनुमंडल, मसौढ़ी और धनरुआ विकासखंडों से मिलकर बना है। यह क्षेत्र प्राचीन पुनपुन नदी के किनारे बसा है, जिसके आसपास दरधा और मोरहर जैसी नदियां भी बहती हैं।
2011 के जनगणना आंकड़ों के अनुसार, मसौढ़ी अनुमंडल की कुल जनसंख्या 2,41,216 थी। उस समय साक्षरता दर मात्र 53.04 प्रतिशत थी और लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 916 महिलाएं थी। पटना से निकटता के कारण यहां शहरीकरण और जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
मसौढ़ी की राजनीतिक यात्रा काफी लंबी रही है। 1957 में इसकी स्थापना के बाद, यह सीट कांग्रेस, सीपीआई, और जनता दल जैसी पार्टियों के बीच भी घूमती रही है। आरक्षण से पहले कांग्रेस ने तीन बार और सीपीआई और जेडीयू ने दो-दो बार जीत दर्ज की थी। लेकिन राजद ने अपनी पकड़ 2009 के लोकसभा चुनावों से ही मजबूत करना शुरू कर दिया था।













