बिहार चुनाव : दरौंदा की सियासत की नई लकीरें, परिवारवाद से लेकर जनादेश तक

0
6

पटना, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार के सिवान जिले में स्थित दरौंदा विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की राजनीति में तेजी से उभरते हुए क्षेत्रों में से एक है। यह सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें दरौंदा, सिसवन प्रखंड के साथ-साथ हसनपुरा प्रखंड के 10 ग्राम पंचायत शामिल हैं। इस क्षेत्र का गठन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों पर किया गया था।

दरौंदा की भौगोलिक बनावट पूरी तरह से समतल और उपजाऊ है। यहां के किसानों को गंडक नदी की सिंचाई सुविधा का लाभ मिलता है। कृषि इस क्षेत्र की मुख्य आर्थिक गतिविधि बनी हुई है। यहां धान, गेहूं और गन्ना प्रमुख फसलें हैं। इसके साथ ही, चावल मिलों और ईंट भट्ठों जैसे छोटे उद्योग स्थानीय लोगों के रोजगार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

दरौंदा की कनेक्टिविटी अच्छी मानी जाती है। यहां से सिवान जिला मुख्यालय लगभग 20 किलोमीटर, छपरा 50 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में और गोपालगंज करीब 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। यहां के युवा मतदाता विकास और अवसरों की राजनीति की ओर झुकाव रखते हैं। रोजगार की समस्या के कारण यहां से लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।

दरौंदा विधानसभा क्षेत्र में अब तक पांच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव (2011 और 2019) शामिल हैं। 2010 के चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) की जगमतो देवी ने जीत दर्ज की थी। उनके निधन के बाद 2011 में उपचुनाव हुआ, जिसमें उनकी बहू कविता सिंह ने जीत हासिल की। उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में भी अपनी सीट बरकरार रखी। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कविता सिंह ने सिवान संसदीय सीट से जीत दर्ज की, जिससे दरौंदा में दूसरा उपचुनाव हुआ। इस बार जेडीयू ने कविता सिंह के पति अजय कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार करणजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह ने हराया। हालांकि, बाद में करणजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए और 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाकपा (माले) के अमरनाथ यादव को पराजित किया।

दरौंदा का मतदाता आधार पूरी तरह ग्रामीण है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां कोई शहरी मतदाता नहीं था। 2024 में चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कुल मतदाताओं की संख्या 3,29,715 है। मतदाताओं में 1,71,359 पुरुष, 1,58,347 महिलाएं और 9 थर्ड जेंडर हैं।

यहां राजपूत, यादव, पासवान, मुस्लिम और ब्राह्मण समुदायों की उल्लेखनीय उपस्थिति है, जो चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं।