रांची, 1 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार के बाद अब झारखंड में भी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने की तैयारी है। इसे लेकर सियासी बवाल शुरू हो गया है। राज्य में झामुमो-कांग्रेस-राजद के सत्तारूढ़ गठबंधन ने इसके खिलाफ 4 अगस्त को विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजने का फैसला किया है। इसे लेकर भाजपा और जदयू के नेताओं ने कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण चुनाव आयोग की सामान्य प्रक्रिया है। इसका विरोध बेमतलब है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान की भावना के खिलाफ है और इससे गरीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा, “झारखंड की जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं और इस जनविरोधी प्रक्रिया का विरोध किया जाएगा।”
स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए इस प्रक्रिया को मुस्लिम, दलित और आदिवासी समाज को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि एसआईआर के जरिए भाजपा अपनी हार को रोकने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडे सिंह ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी विपक्ष की राय के बिना यह प्रक्रिया थोपी जा रही है। जीएसटी की तरह केंद्र फिर एक बार बिना तैयारी के यह कदम उठा रहा है, जिसका नुकसान जनता को उठाना पड़ेगा।”
कांग्रेस विधायक राजेश कच्छप ने चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग को आधार कार्ड को वोटर कार्ड से लिंक करना चाहिए, ताकि फर्जीवाड़ा रोका जा सके। उन्होंने कहा कि एसआईआर के पीछे भाजपा को फायदा पहुंचाने की मंशा है।
दूसरी तरफ, जदयू विधायक सरयू राय ने एसआईआर का समर्थन करते हुए कहा कि निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है और इसी प्रक्रिया के तहत एसआईआर लागू किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि फर्जी वोटरों को रोकना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
भाजपा विधायक सत्येंद्र तिवारी ने कहा कि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टियां चुनाव से पहले ही अपनी हार से डरी हुई हैं और एसआईआर का विरोध कर रही हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के. रवि कुमार ने मतदाता सूची पुनरीक्षण की तैयारी को लेकर बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सभी जिलों के अधिकारियों के साथ बैठक की थी।