बिहार विधानसभा चुनाव : क्या महागठबंधन का गढ़ तोड़ पाएगा एनडीए? समझें बलरामपुर सीट का समीकरण

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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच कटिहार जिले की बलरामपुर विधानसभा सीट तमाम राजनीतिक दलों के लिए एक विशेष महत्व रखती है। कटिहार जिले की इस सामान्य वर्ग की सीट का गठन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद हुआ था। यह सीट कटिहार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। इसमें बरसोई और बलरामपुर प्रखंड शामिल हैं।

भौगोलिक रूप से यह इलाका पश्चिम बंगाल की सीमा के पास, गंगा के उत्तरी तट पर स्थित है, जहां कोसी और महानंदा नदियों का संगम होता है। यह बाढ़-प्रवण क्षेत्र है और यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, गेहूं, मक्का, दालें और कुछ इलाकों में जूट प्रमुख फसलें हैं, वहीं रोजगार के लिए बड़ी संख्या में लोग अन्य राज्यों में पलायन करते हैं। पश्चिम बंगाल से निकटता के कारण सीमावर्ती व्यापार भी खूब होता है।

चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 में यहां की अनुमानित जनसंख्या 699375 है। इनमें 353106 मेल वोटर और 346269 फीमेल वोटर हैं। 2020 में यहां करीब 60.80 फीसदी मुस्लिम मतदाता थे। इसके अलावा, अनुसूचित जाति 12 फीसदी और जनजाति 1.62 फीसदी हैं। यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाका है।

इस सीट पर हुए पिछले तीन विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो, 2010 में यहां से निर्दलीय हिंदू उम्मीदवार दुलाल चंद्र गोस्वामी ने सीपीआई(एमएल) के महबूब आलम को हरा दिया था। मुस्लिम वोटों के कई दलों में बंट जाने से उन्हें जीत मिली थी। बाद में गोस्वामी जदयू में शामिल हो गए। 2015 के चुनाव में जब जदयू और भाजपा का गठबंधन टूटा, तो जदयू ने एक बार फिर गोस्वामी को उम्मीदवार बनाया। वहीं, भाजपा ने वरुण झा को मैदान में उतारा, लेकिन सीपीआई(एमएल) के महबूब आलम ने 20,419 वोटों से जीत दर्ज की। 2020 में सीपीआई (एमएल) राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बनी और महबूब आलम ने वीआईपी के वरुण झा को भारी अंतर से हराते हुए 53,597 वोटों की जीत दर्ज की।

बलरामपुर का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। 1856 में यहां नवाब सिराज-उद-दौला और पूर्णिया के नवाबजंग के बीच बलरामपुर का युद्ध हुआ था, जिसमें करीब 12 हजार लोग मारे गए थे। बाद में ब्रिटिश काल में यह एक महत्वपूर्ण अंतर्देशीय बंदरगाह बना, लेकिन फरक्का बैराज और नदियों के प्रवाह में बदलाव के कारण इसकी स्थिति कमजोर होती गई। अब यहां सड़क और पुलों का निर्माण इसे बिहार का द्वार के रूप में फिर से स्थापित करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो बलरामपुर अब महागठबंधन का मजबूत गढ़ बन चुका है। दूसरी तरफ, एनडीए इस सीट पर खुद को मजबूत करने के प्रयास में जुटा है। 2025 के चुनाव में मतदाता सूची के पुनरीक्षण जैसे मुद्दों को यहां वोट ध्रुवीकरण की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह रणनीति महागठबंधन की पकड़ को कमजोर कर सकेगी या नहीं।