दिल्ली दंगा मामला : आरोपियों की जमानत याचिका पर 3 नवंबर को अगली सुनवाई

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नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (आईएएनएस)। 2020 के दिल्ली दंगा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को शरजील इमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा, शिफा-उर-रहमान और मोहम्मद सलीम खान की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अब अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी।

इस दौरान अदालत में सभी आरोपियों के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। सबसे पहले गुलफिशा फातिमा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें रखीं।

उन्होंने अदालत को बताया कि गुलफिशा पिछले पांच साल से जेल में बंद हैं। पहली चार्जशीट 16 सितंबर 2020 को दाखिल हुई थी, जिसके बाद हर साल सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की जाती रही। सिंघवी ने कहा कि इस केस में ट्रायल में देरी हो रही है। आज तक आरोप तय भी नहीं हो पाए हैं।

उन्होंने कहा कि गुलफिशा इस केस में जेल में बंद एकमात्र महिला आरोपी हैं, जबकि इसी मामले में अन्य महिला आरोपियों (देवांगना और नताशा) को पहले ही जमानत मिल चुकी है। ऐसे में समान आधार पर गुलफिशा भी जमानत की हकदार हैं।

सिंघवी ने अदालत को बताया कि गुलफिशा पर आरोप है कि उन्होंने धरना स्थल स्थापित किए थे, लेकिन उन स्थानों पर कभी भी कोई हिंसा नहीं हुई। उन्होंने कहा, “जहां भी वो मौजूद थीं, वहां किसी के पास तेजाब, मिर्च पाउडर या किसी भी हथियार का कोई सबूत नहीं मिला।”

वकील ने आगे कहा कि पुलिस ने ताहिर हुसैन से मिले पैसों से आतंकी गतिविधि चलाने का आरोप लगाया, लेकिन न तो पैसे का स्रोत बताया गया और न ही कोई सबूत पेश किया गया। उन्होंने कहा, “अगर पुलिस मुझे ताहिर हुसैन से जोड़ना चाहती है, तो उन्हें कम से कम कोई कड़ी दिखानी होगी।”

सिंघवी ने यह भी बताया कि जमानत याचिका 90 से ज्यादा बार सूचीबद्ध हो चुकी है, फिर भी सुनवाई में लगातार देरी हो रही है।

इसके बाद उमर खालिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि जब दिल्ली में दंगे हुए, तब उमर खालिद दिल्ली में मौजूद ही नहीं थे। सिब्बल ने बताया कि उमर पर केवल साजिश रचने का आरोप है और उनके खिलाफ न कोई हथियार बरामद हुआ, न कोई पैसा, न ही कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य जो उन्हें हिंसा से जोड़ सके। उन्होंने कहा, “751 एफआईआर में से केवल एक में उनका नाम है और वह भी सिर्फ साजिश के आधार पर।”

इसके बाद शरजील इमाम की ओर से वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि अभियोजन पक्ष को इस मामले की जांच पूरी करने में तीन साल लग गए। एफआईआर 6 मार्च 2020 को दर्ज हुई थी, जबकि पहली चार्जशीट 16 सितंबर 2020 को और अंतिम सप्लीमेंट्री चार्जशीट 7 जून 2023 को दाखिल हुई। उन्होंने कहा कि अगर पांच साल बीत गए हैं, तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मेरी ओर से कोई देरी नहीं हुई।

दवे ने बताया कि शरजील की गिरफ्तारी 25 अगस्त 2020 को हुई थी और वह तब से लगातार जेल में हैं। उन्होंने कहा कि शरजील पहले से ही जनवरी 2020 में दर्ज एक अन्य एफआईआर में हिरासत में था। अदालत को गुण-दोष के आधार पर उसकी जमानत पर विचार करना चाहिए।

अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि अब अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी।