गाजा में युद्धविराम और शांति प्रयास : नई वास्तविकताएं और चुनौतियां

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नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। साल 2023 का अक्टूबर महीना दुनिया की आत्मा को झकझोर गया था। हमास के हमले और उसके बाद इजरायल की भीषण सैन्य कार्रवाई ने गाजा को मानवीय त्रासदी की गहराई में धकेल दिया। दो वर्षों की बर्बादी, विस्थापन और निरंतर हमलों के बाद आखिरकार 2025 के अंत में उम्मीद की एक किरण दिखी, युद्धविराम लागू हुआ।

यह केवल हथियारों के शांत होने का क्षण नहीं था, बल्कि उन मासूम आवाजों की जीत थी, जो वर्षों से शांति की गुहार लगा रही थीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता ने इस प्रक्रिया को गति दी, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ मध्य-पूर्व में कूटनीतिक पुनर्जागरण के रूप में देख रहे हैं।

13 अक्टूबर 2025 को मिस्र के शर्म अल-शेख शांति सम्मेलन ने इतिहास का नया पन्ना खोला। अमेरिका, मिस्र, कतर और तुर्की के नेतृत्व में “द ट्रंप डिक्लरेशन फॉर इन्ड्यूरिंग पीस एंड प्रॉसपेरिटी” पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें युद्धविराम, बंधकों की अदला-बदली, गाजा के पुनर्निर्माण और भविष्य की राजनीतिक व्यवस्था को लेकर व्यापक समझौता हुआ।

ट्रंप ने अपने भाषण में कहा, “हमने वह कर दिखाया जिसे असंभव कहा जाता था। अब, अंततः, मध्य-पूर्व में शांति की शुरुआत हुई है।”

इस समझौते के तहत गाजा में एक अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (आईएसएफ) और तकनीकी समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा गया है, जो पुनर्निर्माण और प्रशासनिक ढांचे को सुचारू रूप से संभालेगी।

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्धविराम को “एक व्यावहारिक कदम” कहा, लेकिन फिलिस्तीनी राज्य की अवधारणा पर उनकी चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए।

दूसरी ओर, हमास ने भी पूर्ण समर्थन देने से परहेज किया, यह कहते हुए कि “गाजा की आत्मा पर हमारा नियंत्रण कायम रहेगा।” फिलिस्तीनी प्रशासन ने इसे अवसर के रूप में देखा, एक ऐसी शुरुआत जो आत्मनिर्भरता, पुनर्निर्माण और आत्मसम्मान की दिशा में पहला कदम हो सकती है। परंतु इस समझौते में बाध्यकारी प्रावधानों की कमी और स्पष्ट जवाबदेही तंत्र की अनुपस्थिति अब भी चिंता का विषय है।

हमास द्वारा 20 जीवित बंधकों और कुछ मृतकों के शव सौंपे जाने के बाद इजरायल ने 1,968 फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा किया। गाजा के पुनर्निर्माण की अनुमानित लागत 53 अरब डॉलर आंकी गई है। एक ऐसी राशि जो केवल धन से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग, तकनीकी पारदर्शिता और मानवीय प्रतिबद्धता से जुटाई जा सकती है। प्रस्तावित तकनीकी समिति के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के पुनर्संयोजन की योजना है। लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती है, स्थानीय भागीदारी और हमास की प्रशासनिक भूमिका को परिभाषित करना।

यह शांति समझौता जितना प्रेरक है, उतना ही नाजुक भी। किसी भी पक्ष की जरा सी असावधानी या अविश्वास इसे विफल कर सकता है। शांति का टिकना अब तीन स्तंभों पर निर्भर करेगा, हथियारों का नियंत्रण और पारदर्शी निगरानी, राजनीतिक स्वायत्तता की स्पष्ट रूपरेखा और तीसरा अंतरराष्ट्रीय समर्थन और स्थानीय नेतृत्व का संतुलन।

अगर ये तीनों तत्व मजबूती से एक साथ जुड़े रहे, तो गाजा केवल पुनर्निर्मित नहीं होगा, वह पुनर्जन्म लेगा।

भारत, जो हमेशा से “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता आया है, गाजा शांति प्रक्रिया में एक सेतु की भूमिका निभा सकता है। एक गैर-पक्षपातपूर्ण और मानवीय मध्यस्थ के रूप में भारत गाजा के पुनर्निर्माण में तकनीकी, शैक्षणिक और स्वास्थ्य सहायता प्रदान कर सकता है। भारत के पास वह अनुभव है, जो न तो इजरायल को असहज करता है और न ही फिलिस्तीन को असुरक्षित। मिस्र, कतर और तुर्की जैसे क्षेत्रीय भागीदारों के साथ मिलकर भारत विश्वसनीय संवाद मंच तैयार कर सकता है, जिससे न केवल मध्य-पूर्व बल्कि पूरे एशिया में स्थिरता और आर्थिक संतुलन की नई राहें खुल सकती हैं।

“गाजा शांति प्रस्ताव” केवल एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं। यह मानवता के पुनर्जन्म की घोषणा है। ट्रंप की पहल ने इतिहास को एक नया मोड़ दिया है, लेकिन इसे स्थायी सफलता बनाने के लिए दुनिया को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। भारत जैसे देशों को अपनी संतुलित, विवेकपूर्ण और मानवीय भूमिका निभाकर इस प्रक्रिया को स्थायी बनाना होगा। शांति कोई समझौता नहीं, एक निरंतर प्रयास है। जब हथियार मौन हो जाते हैं, तब इंसानियत बोलती है।

(लेखिका मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की राष्ट्रीय संयोजक हैं और मध्य-पश्चिमी एशिया की विशेषज्ञ हैं।)