नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)। सोमवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते शहरीकरण, बेहतर परीक्षण पहुंच और बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता से प्रेरित भारतीय डायग्नोस्टिक्स बाजार, जिसका मूल्य पिछले वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 24) में 15 बिलियन डॉलर था, 14 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ने की उम्मीद है।
नई दिल्ली में एसोचैम डायग्नोस्टिक्स सम्मेलन में प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस द्वारा जारी किए गए श्वेत पत्र के अनुसार, टियर 2 और उससे आगे के शहरों के सामने गंभीर चुनौतियां हैं, जहां 65 प्रतिशत से अधिक डायग्नोस्टिक प्रयोगशालाएं टियर 1 और 2 शहरों में केंद्रित हैं, जिससे तकनीक-संचालित समाधानों के लिए व्यापक अवसर उपलब्ध होते हैं।
श्वेत पत्र में एआई, ब्लॉकचेन, स्मार्ट लैब, जेनेटिक परीक्षण, एमहेल्थ, टेलीमेडिसिन, मोबाइल डायग्नोस्टिक्स और स्मार्ट वियरेबल्स जैसे प्रमुख रुझानों और प्रौद्योगिकियों की जांच की गई है, जिनमें अंतर को पाटने और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक अधिक न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने की क्षमता है।
निष्कर्षों के अनुसार, टियर 1 शहर, जिनमें 9 प्रतिशत आबादी रहती है, सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 37 प्रतिशत का योगदान करते हैं।
जबकि 540 से अधिक शहरी केंद्रों में से अधिकांश टियर 2 और टियर 3+ शहर हैं, जिनमें टियर 3+ शहर हैं। 2030 तक अतिरिक्त 46 मिलियन लोगों को समायोजित करने का अनुमान है।
प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस के हेल्थकेयर के प्रबंध साझेदार आर्यमन टंडन ने कहा, “सरकारी पहल, बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता और निवारक देखभाल पर बढ़ते ध्यान के साथ, स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने में डायग्नोस्टिक्स की भूमिका पहले कभी इतनी महत्वपूर्ण नहीं रही है।”
उन्होंने कहा, “हम मिलकर एक ऐसी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का निर्माण कर सकते हैं जो न केवल वर्तमान असमानताओं को दूर करेगी बल्कि सभी के लिए विशेष रूप से तेजी से बढ़ते टियर 2 और 3+ शहरों में अधिक स्वस्थ और अधिक न्यायसंगत भविष्य की नींव भी रखेगी।”
श्वेत पत्र में कहा गया है कि साझा दृष्टिकोण पर एकजुट होकर तथा प्रौद्योगिकी और नवाचार में साहसिक निवेश के लिए प्रतिबद्धता जताकर, हितधारक भारत में निदान परिदृश्य को बदल सकते हैं।
कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य सेवा वितरण में असमानताओं को दूर करने में प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी भूमिका पर प्रकाश डाला।