नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या तेजी से बढ़ रही है। लगभग हर सात में से एक व्यक्ति इससे प्रभावित है। इस चुनौती से निपटने के लिए नए और प्रभावी इलाज की जरूरत है। इस बीच एक शोध में खुलासा हुआ है कि हमारे पेट के छोटे-छोटे जीवाणु यानी गट माइक्रोबायोम का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर होता है। खासकर डिप्रेशन, एंग्जाइटी और अन्य मानसिक बीमारियों से राहत दिलाने में पेट के ये जीवाणु मददगार साबित हो सकते हैं।
साउथ ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पेट और दिमाग के बीच के कनेक्शन को समझने के लिए कई शोध का विश्लेषण किया। नेचर मेंटल हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, उन्होंने पाया कि पेट और दिमाग के बीच गहरा और जटिल संबंध है। पेट में मौजूद जीवाणु दिमाग को रसायनों और तंत्रिकाओं के जरिए सीधे प्रभावित करते हैं, जो हमारे मूड, तनाव और सोचने की क्षमता को बदल सकते हैं।
विश्वविद्यालय में प्रमुख लेखक श्रीनिवास कामथ ने कहा, “पेट में रहने वाले ट्रिलियन्स माइक्रोब्स यानी सूक्ष्म जीव दिमाग से कई तरह से कनेक्ट रहते हैं। ये जीव पेट में बनने वाले रसायनों को दिमाग तक पहुंचाते हैं, जो मूड को बेहतर या खराब कर सकते हैं। हालांकि, अभी भी यह सवाल बाकी है कि क्या ये बदलाव मानसिक बीमारियों को पैदा करते हैं या ये शरीर की किसी और समस्या का संकेत होते हैं।”
शोधकर्ताओं की टीम ने कई जानवरों पर किए गए अध्ययनों की समीक्षा की, जिसमें यह साफ देखा गया कि पेट के जीवाणु दिमाग की रसायन प्रक्रिया, तनाव के जवाब और व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं। इसके अलावा, डिप्रेशन और सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों में पेट के जीवाणुओं के पैटर्न में गड़बड़ी पाई गई है। यह दर्शाता है कि मानसिक स्वास्थ्य और पेट के जीवाणुओं के बीच सीधे संबंध हो सकता है।
शोध में यह भी सामने आया कि प्रोबायोटिक्स, आहार में बदलाव और मल प्रत्यारोपण जैसे उपचार मूड और एंग्जायटी जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं। साथ ही, यह देखा गया कि कई मानसिक दवाएं भी पेट के माइक्रोबायोम को प्रभावित करती हैं, जो इस कनेक्शन को और मजबूत बनाता है। ये नतीजे संकेत देते हैं कि भविष्य में माइक्रोबायोम आधारित इलाज मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के लिए एक नया रास्ता खोल सकते हैं।
दुनिया भर में लगभग 97 करोड़ लोग मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिनमें डिप्रेशन और एंग्जायटी सबसे बड़ी समस्याएं हैं। वर्तमान में उपलब्ध दवाओं और उपचारों से लगभग एक-तिहाई मरीजों को कोई खास फायदा नहीं होता, इसलिए ऐसे नए और सस्ते इलाज की तलाश जरूरी है जो अधिक लोगों तक पहुंच सकें।
इस शोध के सह-लेखक डॉ. पॉल जॉयस ने कहा कि हम यह साबित कर सकते हैं कि पेट के जीवाणु मानसिक बीमारियों में सीधे भूमिका निभाते हैं। यह मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। इससे न केवल इलाज बल्कि मानसिक बीमारियों की पहचान और रोकथाम के तरीके भी बदल सकते हैं।
जॉयस ने आगे कहा, ”माइक्रोबायोम आधारित इलाज जैसे प्रोबायोटिक्स, प्रीबायोटिक्स और खास तरह के आहार सस्ते, सुरक्षित और आसान विकल्प हो सकते हैं, जो अलग-अलग संस्कृतियों और समाजों में भी अपनाए जा सकते हैं। ये उपचार मौजूदा दवाओं के साथ मिलकर बेहतर परिणाम दे सकते हैं।”
फिलहाल शोधकर्ता भविष्य में ऐसे अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं जो समय-समय पर पेट के जीवाणुओं में होने वाले बदलाव को ट्रैक करें। साथ ही, वे ज्यादा विविध और बड़े जनसंख्या समूहों पर शोध करना चाहते हैं ताकि यह समझा जा सके कि हमारा खान-पान, पर्यावरण और संस्कृति पेट और दिमाग के संबंध को कैसे प्रभावित करते हैं।