‘राम लहर’ से उत्साहित कर्नाटक भाजपा को खोई जमीन वापस पाने का भरोसा

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बेंगलुरू, 20 जनवरी (आईएएनएस)। पिछले साल के अंत में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत से उत्पन्न अनुकूल लहर और अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद कर्नाटक में हाल तक खराब स्थिति में रहने वाला भाजपा खेमा गति पकड़ रहा है।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, कर्नाटक में अधिकतम सीटें जीतना एक हासिल करने योग्य लक्ष्य की तरह लगता है। अब, लक्ष्य राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी से सत्ता छीनना है।

दूसरी तरफ कांग्रेस में कैबिनेट मंत्रियों के एक समूह ने अधिक उपमुख्यमंत्री पदों की मांग की। वहीं, मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के बेटे डॉ. यतींद्र ने अपील की कि लोगों को उनके पिता के हाथों को मजबूत करना चाहिए, ताकि उन्हें पूरे कार्यकाल के लिए पद पर बने रहने में मदद मिल सके। यह कांग्रेस पार्टी के भीतर सत्ता के लिए खींचतान का संकेत देता है।

भाजपा सूत्रों ने दावा किया, “और, यह केवल समय की बात है।”

शिवकुमार और सिद्दारमैया पहले ही भाजपा के सरकार गिराने की कोशिशों के बारे में बोल चुके हैं, जैसे 2022 में महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन सरकार को गिरा दिया गया था।

लोकसभा चुनाव के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार को गिराने की भाजपा की भव्य योजनाओं के बारे में राज्य के राजनीतिक हलकों में पहले से ही चर्चा चल रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा था कि कर्नाटक की राजनीति में अजित पवार और एकनाथ शिंदे भी हैं और लोकसभा चुनाव के बाद कुछ भी हो सकता है।

कांग्रेस अपने विधायकों को मनाने के लिए संघर्ष कर रही है, क्योंकि गारंटी योजनाओं के कार्यान्वयन के कारण उनके निर्वाचन क्षेत्रों को पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं कराया जा सका।

एक प्रमुख नेता बताते हैं कि यह अब कोई रहस्य नहीं है कि भाजपा हमले के लिए उचित समय का इंतजार कर रही है।

दूसरी ओर, जद (एस) के साथ गठबंधन करके भाजपा दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र पर जीत हासिल करना चाहती है और राज्य के बाकी हिस्सों में एकजुट होकर कांग्रेस का मुकाबला करना चाहती है।

पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे बी.वाई. विजयेंद्र को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में वरिष्ठ नेता आर. अशोक के साथ भाजपा आम चुनावों से पहले कर्नाटक में प्रमुख लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के वोटों को मजबूत करने के लिए आश्‍वस्त है।

भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि 1991 के बाद से राज्य में लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी को वोट दिया गया है।

जद (एस) के साथ गठबंधन और राम मंदिर लहर से पार्टी को दक्षिण कर्नाटक जिलों से 15 लाख अतिरिक्त वोट हासिल करने में मदद मिलेगी, जो मई 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद के लिए पेश करने के साथ कांग्रेस के पास चले गए थे।

2019 के आम चुनाव में बालाकोट हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार होकर भाजपा ने कुल 28 एमपी सीटों में से 25 सीटें जीती थी।

पार्टी, जो सिद्दारमैया और शिवकुमार के सामने कमजोर दिख रही थी, अब पूरी तरह से चार्ज और आक्रामक मोड में है।

भाजपा ने सिद्दारमैया के खिलाफ करवार से भाजपा सांसद अनंत कुमार हेगड़े की अपमानजनक टिप्पणी से खुद को दूर कर लिया है, लेकिन सूत्रों ने पुष्टि की है कि यह मुख्यमंत्री की प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, आरएसएस और हिंदुत्व की आलोचना का जवाब देने की रणनीति का हिस्सा है।

हैरानी की बात यह है कि सिद्दारमैया बचाव की मुद्रा में दिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर रामलला की प्रतिमा और अयोध्या के उद्घाटन समारोह की तैयारी की तस्वीरों की बाढ़ आ गई है।

भाजपा और हिंदुत्ववादी ताकतें सोशल मीडिया के साथ-साथ जमीन पर भी सफलतापूर्वक अभियान चला रही हैं।

कर्नाटक में आरएसएस ने एक योजना की रूपरेखा तैयार की है और बहुप्रतीक्षित अयोध्या कार्यक्रम से पहले कर्नाटक के 29,000 से अधिक गांवों तक पहुंच बनाई है।

संगठन ने 1 से 15 जनवरी के बीच संपर्क अभियान चलाया था, जिसके दौरान उसने राज्य के सभी 29,500 गांवों तक पहुंचने का दावा किया था।

लोगों को ‘मंत्राक्षते’ (पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पवित्र चावल), अयोध्या में राम मंदिर की एक तस्वीर और अयोध्या से लाए गए हैंडबिल वितरित किए गए हैं।

22 जनवरी को कर्नाटक के प्रत्येक गांव के प्रमुख मंदिरों में ‘सत्संग’ और ‘राम जाप’ कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। भव्य कार्यक्रम के लाइव प्रसारण के लिए एलईडी स्क्रीन लगाई जाएंगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने 22 जनवरी की शाम को हर घर से पांच-पांच दीये अयोध्या की ओर जलाने का आह्वान किया था। पार्टी नेताओं ने बताया कि भाजपा सद्भावना और राजनीतिक लाभ हासिल करने को लेकर पूरी तरह आश्‍वस्त है।

राज्य में कांग्रेस सरकार के अंदरूनी झगड़े के बाद भगवा खेमे का आत्मविश्‍वास बढ़ रहा है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कर्नाटक में विकसित जातियों और पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच राजनीतिक संघर्ष देखने को मिलने वाला है।

कर्नाटक में आने वाले दिनों में भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी और कांटे की टक्कर देखने को मिलने वाली है और जाति जनगणना रिपोर्ट लागू करने को लेकर भी खींचतान बढ़ने की आशंका है।

–आईएएनएस

एबीएम/