कोलकाता, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। सीपीआई (एम) ने बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ पर डाक टिकट और 100 रुपए का सिक्का जारी करने को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की।
सीपीआई (एम) की तरफ से जारी एक बयान में, पार्टी पोलित ब्यूरो ने इसे ‘भारत के संविधान पर एक गंभीर आघात और अपमान’ बताया, जिसे आरएसएस ने कभी स्वीकार नहीं किया।
सीपीआई (एम) नेतृत्व के अनुसार, यह बेहद आपत्तिजनक है कि एक आधिकारिक सिक्के पर एक हिंदू देवी ‘भारत माता’ की छवि अंकित हो, जिसे आरएसएस हिंदुत्व राष्ट्र की अपनी सांप्रदायिक अवधारणा के प्रतीक के रूप में प्रचारित करता है।
पार्टी पोलित ब्यूरो के बयान में कहा गया, “1963 के गणतंत्र दिवस परेड में वर्दीधारी आरएसएस स्वयंसेवकों को दिखाने वाला डाक टिकट भी इतिहास को झूठा साबित करता है। यह इस झूठ पर आधारित है कि नेहरू ने भारत-चीन युद्ध के दौरान आरएसएस की देशभक्ति को मान्यता देने के लिए उसे 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था, जबकि साक्ष्यों से यह साबित हो चुका है कि 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में वास्तव में एक लाख से अधिक नागरिकों का एक विशाल जमावड़ा था। वर्दीधारी आरएसएस स्वयंसेवकों की उपस्थिति, यदि थी भी, तो अप्रकाशित और आकस्मिक थी।”
पार्टी नेतृत्व ने दावा किया कि आरएसएस की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मनाने के लिए जारी किए गए डाक टिकट और नए सिक्के की पूरी कवायद आरएसएस की भूमिका को छिपाने के लिए है। यह न केवल स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहा, बल्कि वास्तव में फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश रणनीति को मजबूत किया। इसने भारत के लोगों की एकता को कमजोर करने की कोशिश की, जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष का एक महत्वपूर्ण घटक था।
पोलित ब्यूरो के बयान में कहा गया है, “स्वतंत्र भारत के इतिहास ने सबसे भीषण सांप्रदायिक हिंसा देखी है, जिसमें आरएसएस की भूमिका का विस्तार से आधिकारिक जांच आयोगों की कई रिपोर्टों में उल्लेख किया गया है। आज, आरएसएस और उसका परिवार ही मनुवादी विचारधाराओं को बढ़ावा देकर अल्पसंख्यक समुदायों और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को निशाना बना रहा है।”













