नई दिल्ली, 25 दिसंबर (आईएएनएस)। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने गुरुवार को कहा कि ईसाइयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में आम आदमी पार्टी के नेताओं सौरभ भारद्वाज, संजीव झा और आदिल अहमद खान के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने से उनकी असंवेदनशील और छोटी राजनीति उजागर हो गई है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता द्वारा सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद, आम आदमी पार्टी के नेता खबरों में बने रहने के लिए घटिया हथकंडे अपना रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जिन तीन आम आदमी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, उन्होंने धार्मिक आस्था का मजाक उड़ाकर अशोभनीय कृत्य किया है, जो किसी भी धर्म में स्वीकार्य नहीं है।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि किसी भी धर्म का मजाक उड़ाना हर हाल में गलत है।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि आम आदमी नेताओं ने यह अपमानजनक कृत्य उस समय किया जब अल्पसंख्यक समुदाय अपना त्योहार मना रहा था।
अल्पसंख्यक समुदाय का मजाक उड़ाने का आरोप लगाते हुए सचदेवा ने कहा कि विपक्ष में होने से किसी भी मुद्दे पर विरोध करने का अधिकार तो मिलता है, लेकिन ऐसा करने का एक संवैधानिक और संवेदनशील तरीका होता है।
भाजपा नेता का आम आदमी नेताओं के खिलाफ यह बयान शहर की वायु गुणवत्ता से संबंधित एक राजनीतिक वीडियो में सांता क्लॉस का अनुचित चित्रण करके ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के ठीक बाद आया है।
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज, संजीव झा और आदिल अहमद खान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। यह एफआईआर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में दर्ज की गई है।
शिकायत के मुताबिक, 17 और 18 दिसंबर को इन नेताओं ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट्स से एक वीडियो पोस्ट किया। यह वीडियो कनॉट प्लेस में किए गए एक राजनीतिक स्किट से जुड़ा है।
वीडियो में ईसाई समुदाय के लिए एक पवित्र और सम्मानित धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीक सांता क्लॉज को मजाकिया और अपमानजनक तरीके से दिखाया गया है।
वीडियो में सांता क्लॉज को सड़क पर बेहोश होकर गिरते हुए दिखाया गया और उन्हें राजनीतिक संदेश देने के लिए एक प्रॉप (साधन) की तरह इस्तेमाल किया गया।
इतना ही नहीं, वीडियो में नकली सीपीआर करते हुए सांता क्लॉज का मजाक उड़ाया गया, जिससे सेंट निकोलस और क्रिसमस पर्व की पवित्रता को ठेस पहुंची।
शिकायत में कहा गया है कि यह सब जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किया गया, ताकि ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत किया जा सके।
एडवेंट के अंतिम दिनों में धार्मिक प्रतीक का इस तरह राजनीतिक इस्तेमाल करना ईसाई धर्म का अपमान माना गया है।

