नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)। वरिष्ठ पत्रकार प्रेम प्रकाश की नई पुस्तक ‘हिस्ट्री दैट इंडिया इग्नोर्ड’ देश की आजादी के संघर्ष पर एक नई और तथ्यपरक दृष्टि पेश करती है। यह पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देती है, विशेष रूप से महात्मा गांधी की भूमिका को लेकर स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाती है।
पुस्तक का मुख्य संदेश साफ है कि इतिहास में केवल गांधी जी का नाम प्रमुखता से लिया गया, लेकिन हजारों युवाओं ने भी स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, जिन्हें भुला दिया गया।
70 से अधिक वर्षों के पत्रकारिता अनुभव वाले प्रेम प्रकाश ने भारत के कई ऐतिहासिक क्षणों को प्रत्यक्ष रूप से कवर किया है, जिनमें 1962 और 1965 के युद्ध भी शामिल हैं।
इस पुस्तक में उन्होंने सिकंदर के आक्रमण से लेकर मुस्लिम और ब्रिटिश हमलों तक भारत के संघर्षों के बारे में चर्चा की है और बताया है कि कैसे क्रांतिकारियों, राजाओं और मराठों के असंख्य विद्रोहों ने भारत की आजादी की नींव रखी।
इस अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रेम प्रकाश ने पुस्तक पर लेखक एवं स्तंभकार संजीव चोपड़ा और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई के साथ संवाद किया। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
पुस्तक में भगत सिंह, वीर सावरकर, खुदीराम बोस, मदन लाल ढींगरा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों के योगदान को पुनः प्रतिष्ठित किया गया है, जिनके नाम या तो भुला दिए गए या मुख्यधारा के इतिहास में हाशिए पर डाल दिए गए।
फांसी, निर्वासन, भूख हड़तालों और जुझारू प्रतिरोध की कहानियों के माध्यम से यह पुस्तक ब्रिटिश दमन के बीच क्रांतिकारियों के अदम्य साहस और संकल्प को उजागर करती है।
प्रेम प्रकाश मानते हैं कि इतिहास को एकतरफा दिखाया गया है, “क्रांतिकारियों के सशस्त्र संघर्ष को इतिहासकारों ने जानबूझकर दबाया या नजरअंदाज किया। मेरी किताब उस विकृति को ठीक करने की एक कोशिश है।”
पुस्तक के अनुसार, 1947 में आजादी केवल अहिंसा और बातचीत से नहीं मिली, बल्कि आजाद हिंद फौज की बगावत, 1946 की नौसेना और वायुसेना विद्रोह और क्रांतिकारियों के बलिदानों ने भी निर्णायक भूमिका निभाई।
इतिहासकार जहां महात्मा गांधी और कांग्रेस को स्वतंत्रता का श्रेय देते हैं, वहीं पुस्तक में कहा गया है कि 1930 तक कांग्रेस की मांग सिर्फ ‘डोमिनियन स्टेटस’ की थी।
पूर्ण स्वराज तब ही कांग्रेस का लक्ष्य बना, जब भगत सिंह समेत तीन क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी जा रही थी और लाहौर में नेहरू ने कांग्रेस का झंडा फहराते हुए पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की।