आईआईटी मद्रास ने सटीक इलाज को बढ़ावा देने के लिए भारत कैंसर जीनोम एटलस लॉन्च किया

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चेन्नई, 3 फरवरी (आईएएनएस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास ने सोमवार को “भारत कैंसर जीनोम एटलस” शुरू किया, जिससे कैंसर पर शोध को बढ़ावा मिलेगा और इस घातक बीमारी के लिए व्यक्तिगत उपचार विकसित किया जा सकेगा।

आईआईटी मद्रास ने 2020 में इस कैंसर जीनोम कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इस कार्यक्रम के तहत, देशभर से 480 स्तन कैंसर मरीजों के ऊतक (टिशू) नमूनों का विश्लेषण किया गया और 960 संपूर्ण एक्सोम टेस्ट पूरा किया गया है।

संस्थान ने इस डाटाबेस को शोधकर्ताओं और डॉक्टरों के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया है। आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रो. वी. कामकोटी ने कहा, “हमें उम्मीद है कि इस डाटा से कैंसर के कारणों को गहराई से समझने में मदद मिलेगी और शुरुआती स्तर पर रोकथाम के उपाय किए जा सकेंगे। यह एटलस भारत में विभिन्न प्रकार के कैंसर की जीनोम जानकारी को पूरा करने में सहायक होगा।”

प्रो. कामकोटी ने यह भी बताया कि भारतीय स्तन कैंसर जीनोम सिक्वेंसिंग का कार्य पूरा कर लिया गया है।

उन्होंने कहा, “इसमें भारतीय स्तन कैंसर रोगियों के आनुवंशिक बदलावों का विस्तृत संग्रह है, जिससे बीमारी की शुरुआती पहचान, उसके बढ़ने के कारणों और उपचार के प्रभावों को समझने में मदद मिलेगी।”

इस अध्ययन में आईआईटी मद्रास ने मुंबई स्थित “कार्किनोस हेल्थकेयर”, “चेन्नई ब्रेस्ट क्लिनिक” और “कैंसर रिसर्च एंड रिलीफ ट्रस्ट, चेन्नई” के साथ मिलकर काम किया। इन संस्थानों ने भारतीय स्तन कैंसर के नमूनों से प्राप्त आनुवंशिक बदलावों का विश्लेषण कर सारांश तैयार किया।

भारत और दुनिया में कैंसर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार, भारत में हर 9 में से 1 व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर होने की संभावना है और वर्तमान में 14,61,427 लोग कैंसर से जूझ रहे हैं।

2022 से हर साल कैंसर के मामलों में 12.8% की वृद्धि हो रही है। हालांकि कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन भारत में कैंसर से जुड़े जीनोम अध्ययनों की संख्या अब तक कम रही है।

भारत में पाए जाने वाले कैंसर के जीनोमिक डेटा की कमी के कारण, यहां की विशिष्ट आनुवंशिक विशेषताओं को सही तरीके से पहचाना और सूचीबद्ध नहीं किया गया है। इससे न तो कैंसर की पहचान करने वाली किट बन पाई हैं और न ही प्रभावी दवाएं विकसित हो सकी हैं।

आईआईटी मद्रास में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन कैंसर जिनोमिक्स एंड मॉलेक्युलर थेरैप्यूटिक्स के प्रमुख और परियोजना समन्वयक प्रो. एस. महालिंगम ने कहा, “यह नया डाटाबेस भारत में कैंसर से जुड़े विशिष्ट बायोमार्कर्स को पहचानने में मदद करेगा, जिससे स्तन कैंसर की जल्दी पहचान हो सकेगी। इसके अलावा, यह नई दवाओं के लक्ष्य निर्धारित करने और भारतीय आबादी के लिए बेहतर उपचार रणनीतियां विकसित करने में भी उपयोगी होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “इस डाटा का उपयोग उच्च जोखिम वाले समूहों की पहचान करने, कैंसर के बढ़ने की निगरानी करने, व्यक्तिगत उपचार रणनीतियां बनाने और उपचार के प्रभावों को समझने के लिए किया जाएगा।”

यह जीनोम एटलस कैंसर के बढ़ने और उसके विकास की आनुवंशिक जानकारी भी प्रदान करेगा। इससे भारतीय जैव-चिकित्सा अनुसंधान और स्वास्थ्य प्रणाली को “व्यक्तिगत चिकित्सा” की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी। इस प्रक्रिया में मरीज की आनुवंशिक और आणविक जानकारी को ध्यान में रखते हुए उपचार योजना बनाई जाएगी, जिससे चिकित्सा सेवाओं का स्तर और बेहतर हो सकेगा।