एआई का भारत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मानव पूंजी पर प्रभाव

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सोनीपत, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मानव पूंजी पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के प्रभाव को समझने के उद्देश्य से आयोजित प्री-समिट तैयारियों के तहत एक ऐतिहासिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

यह आयोजन ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी द्वारा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के सहयोग से किया गया, जिसमें प्रमुख शिक्षाविदों, विचारकों, बाजार विशेषज्ञों, विधि क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोगों और अन्य विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस संगोष्ठी का उद्देश्य एक ऐसा ढांचा और मॉडल विकसित करना था, जो लोगों, नीतियों और राष्ट्र निर्माण, विशेषकर उच्च शिक्षा, पर गहरा प्रभाव डालेगा।

प्रस्तावित समिट का आयोजन 16 फरवरी से 20 फरवरी, 2026 के बीच किया जाएगा। इसमें उन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जो भारत और उसकी नीतियों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों की मानव पूंजी के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों के कामकाज के लिए सशक्त बना सकें, ताकि ‘विकसित भारत @ 2047’ के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

प्री-समिट विमर्श में एक उद्घाटन सत्र के बाद दो पैनल चर्चाएं आयोजित की गईं। इन चर्चाओं का मुख्य उद्देश्य यह समझना था कि एआई के प्रसार से औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों, विशेषकर ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के समुदायों को कैसे लाभ पहुंचाया जा सकता है, इसके लिए किन नीतिगत ढांचों की आवश्यकता है और राष्ट्रीय कौशल मिशनों तथा शिक्षा प्रणालियों को एआई-आधारित अर्थव्यवस्था की बदलती जरूरतों के अनुरूप कैसे ढाला जा सकता है।

इसके साथ ही इस बात पर भी विचार किया गया कि एआई का उपयोग उत्पादकता बढ़ाने के लिए कैसे किया जाए, बिना असमानता बढ़ाए या कमजोर वर्ग के श्रमिकों को विस्थापित किए। साथ ही यह भी चर्चा हुई कि एआई टूल्स तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने के लिए कौन से मॉडल मौजूद हैं, जैसे सहकारी मॉडल, एग्री-टेक साझेदारियां, सार्वजनिक डेटा कॉमन्स आदि। इसके अलावा यह प्रश्न भी उठाया गया कि पुनः प्रशिक्षण और पुनर्नियोजन की जिम्मेदारी किसकी होगी और भारत की एआई नीतियों में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को स्थानीय सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप कैसे शामिल किया जा सकता है।

प्री-समिट कार्यक्रम के इस महत्वपूर्ण अवसर पर ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) सी. राज कुमार ने “भारत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मानव पूंजी पर एआई के प्रभाव” विषय पर आयोजित इस प्रभावी प्री-समिट कार्यक्रम के आयोजन का स्वागत किया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय द्वारा एआईसीटीई के सहयोग से आयोजित किया गया था।

उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश के लिए, जिसकी जनसांख्यिकीय संरचना और विकासात्मक आकांक्षाएं विशिष्ट हैं, मुख्य चुनौती केवल नई तकनीकों को अपनाने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता को जिम्मेदारीपूर्वक इस तरह एकीकृत किया जाए कि मानव पूंजी मजबूत हो, उत्पादकता बढ़े और समावेशी व नैतिक विकास को बढ़ावा मिले।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चर्चाएं एआई की परिवर्तनकारी क्षमता को नियामक दूरदर्शिता, जिम्मेदार उपयोग और पुनः कौशल विकास व संस्थागत क्षमता में सतत निवेश के माध्यम से दिशा देने पर केंद्रित रहीं, जो ‘विकसित भारत @ 2047’ के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं।

प्रोफेसर कुमार ने आगे कहा कि एआई शासन और क्षमता निर्माण के भविष्य को आकार देने में विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका है। ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, विशेष रूप से जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के अंतर्गत स्थापित सिरिल श्रॉफ सेंटर फॉर एआई, लॉ एंड रेगुलेशन के माध्यम से, कानून, प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक नीति और सामाजिक विज्ञान के बीच सेतु बनाने वाले अंतःविषय शोध, शिक्षा और संवाद को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत के कार्यबल के बदलते स्वरूप और कौशल के भविष्य पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रोफेसर दाबिरु श्रीधर पटनायक ने अपने स्वागत भाषण में कहा, “एआई का उपयोग अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के लिए उत्पादकता और उत्पादन के लिहाज से परिवर्तनकारी क्षमता रखता है। हालांकि, इसके साथ कौशल विकास और रोजगार की अनावश्यकता जैसी चुनौतियां भी जुड़ी हैं। तृतीयक क्षेत्र में एआई के प्रभाव पहले से ही दिखाई दे रहे हैं, जहां आईटी और आईटीईएस, शिक्षा, लेखांकन, ऑडिट, कानूनी और संबद्ध सेवाओं में नौकरी कटौती और छंटनी देखी जा रही है। इसी तरह कई क्षेत्रों में कार्य संरचनाएं और कौशल आवश्यकताएं भी काफी बदल चुकी हैं। एआई का उपयोग अवसरों के साथ-साथ अनुकूलन की चुनौतियां भी प्रस्तुत करता है। यह भारत को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि तकनीक का समान वितरण सुनिश्चित किया जाए और बड़े पैमाने पर कार्यबल विस्थापन को रोकने के उपाय किए जाएं। यह प्री-समिट कार्यक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में मानव पूंजी पर एआई के संभावित प्रभाव पर चर्चा के लिए आयोजित किया गया है।”

प्री-समिट चर्चाओं की शुरुआत उद्घाटन सत्र से हुई, जिसमें जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के प्रमुख शिक्षाविद भी शामिल थे। पहली पैनल चर्चा का विषय था—प्राथमिक, विनिर्माण, लेखांकन, बीएफएसआई सेवाओं और पूंजी बाजार में एआई और मानव पूंजी। इसमें कृषि, विनिर्माण, लेखांकन, ऑडिट और बीएफएसआई क्षेत्रों में एआई-आधारित प्रणालियों के माध्यम से उत्पादकता, दक्षता और सततता बढ़ाने तथा श्रम और आजीविका पर इसके प्रभावों पर चर्चा की गई।

इस पैनल के वक्ताओं में डॉ. चरण सिंह (सीईओ, ईग्रो फाउंडेशन एवं पूर्व चेयरमैन, पंजाब एंड सिंध बैंक), डॉ. अमरजीत चोपड़ा (निदेशक, टाटा पावर ट्रेडिंग; सदस्य, बीओजी, एमडीआई गुरुग्राम; पूर्व अध्यक्ष, आईसीएआई; सदस्य, एनएफआरए एवं पूर्व अध्यक्ष, एनएसीएएस) – ऑनलाइन, सुशील अग्रवाल (चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, एवरो इंडिया लिमिटेड), डॉ. दिनेश त्यागी, आईएएस (सेवानिवृत्त) (चेयरमैन, एसओडीईएस), सुमित माथुर (डायरेक्टर, जनरेटिव एआई – नैटवेस्ट ग्रुप), प्रोफेसर (डॉ.) नंदिता भान (प्रोफेसर एवं वाइस डीन – जेएसपीएच), डॉ. चावी असरानी (एसोसिएट प्रोफेसर – जेएसबीएफ), प्रोफेसर मयंक धौंडियाल (प्रोफेसर एवं डीन – जेजीबीएस), प्रोफेसर दयानंद पांडे (प्रोफेसर एवं डीन – जेएसबीएफ) और प्रोफेसर आर. सुदर्शन (प्रोफेसर एवं डीन – जेएसजीपी) शामिल थे।

इस दौरान यह नोट किया गया कि एआई-संचालित स्वचालन धीरे-धीरे उद्योगों के संचालन के तरीके को बदल रहा है, जिससे अधिक सुरक्षित और कुशल कार्यप्रणालियों के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। इसके साथ ही डिजिटल और तकनीकी कौशल वाले पदों की मांग बढ़ रही है। हालांकि, ये बदलाव नियमित नौकरियों को विस्थापित कर सकते हैं और कौशल अंतर को बढ़ा सकते हैं, खासकर छोटे उद्यमों और एमएसएमई के लिए, जिन्हें नई तकनीकों को अपनाने में कठिनाई होती है। चुनौती यह है कि एआई का उपयोग उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाए और साथ ही श्रमिकों को पुनः कौशल विकास के माध्यम से अनुकूलन में मदद दी जाए, ताकि विनिर्माण कार्यबल में लाभ समान रूप से साझा हो सके।

दूसरी पैनल चर्चा का विषय था- स्वास्थ्य, शिक्षा, विधि शिक्षा, आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं में एआई और मानव पूंजी। इसमें यह जांच की गई कि एआई-संचालित स्वचालन और एनालिटिक्स किस तरह रोजगार, कौशल और सेवा क्षेत्र की संरचना को बदल रहे हैं, विशेषकर शिक्षा (एसटीईएम और लिबरल आर्ट्स), विधि शिक्षा एवं सेवाएं, आईटी-सक्षम सेवाएं (आईटीईएस), ई-गवर्नेंस, सार्वजनिक सेवाएं और स्वास्थ्य सेवाएं।

इस पैनल में डॉ. अभिलाषा गौर (सीईओ – नैसकॉम आईटी-आईटीईएस सेक्टर स्किल काउंसिल), एन.एस.एन. मूर्ति (पार्टनर एवं लीडर, गवर्नमेंट एंड पब्लिक सर्विसेज, टेक्नोलॉजी एंड ट्रांसफॉर्मेशन, डेलॉयट इंडिया), संजय कुमार राकेश, आईएएस (पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, त्रिपुरा सरकार; पूर्व संयुक्त सचिव, मेइटी, भारत सरकार), प्रोफेसर (डॉ.) नितेश बंसल (प्रोफेसर एवं वाइस डीन– जेएसपीएच, डीन– ओओपीएसएस), संदीप अरोड़ा (वाइस प्रेसिडेंट– कैपजेमिनी), आकाशदीप (आईपीओएस – पोस्ट मास्टर जनरल, इंडिया पोस्ट, गुरुग्राम क्षेत्र) और सतविक मिश्रा (पब्लिक पॉलिसी मैनेजर – एआई एंड स्टेट मैनेजमेंट, गूगल) शामिल थे।

इस पैनल में यह भी चर्चा की गई कि एआई-संचालित स्वचालन और विश्लेषण किस तरह सेवा क्षेत्र, विशेषकर शिक्षा, विधि सेवाएं, आईटीईएस, ई-गवर्नेंस, सार्वजनिक सेवाओं और स्वास्थ्य सेवाओं की संरचना को बदल रहे हैं। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में एआई-सक्षम रोबोटिक्स, इंटेलिजेंट ऑटोमेशन और डेटा-आधारित उत्पादन प्रणालियों के कारण कार्यबल की जरूरतें कैसे बदल रही हैं, इस पर भी विचार किया गया।

इन विचार-विमर्शों का उद्देश्य ठोस निष्कर्ष निकालना था और यह एक ऐसा मंच तैयार करने की दिशा में केंद्रित था, जहां नीति-निर्माता, उद्योग जगत के नेता, विशेषज्ञ, तकनीकी जानकार और शिक्षाविद एक साथ आकर एआई के बदलते परिदृश्य पर संवाद कर सकें। इसमें इस बात पर विश्लेषण किया गया कि ‘विकसित भारत @ 2047’ की दिशा में भारत की एआई यात्रा में मानव पूंजी को केंद्र में कैसे रखा जाए, प्राथमिक, विनिर्माण और तृतीयक क्षेत्रों में मानव पूंजी पर एआई से जुड़ी नैतिक, कानूनी और आर्थिक चुनौतियों पर खुला विमर्श कैसे हो, तथा एआई-आधारित अर्थव्यवस्था के अनुरूप भारत के कार्यबल को तैयार करने के लिए पुनः कौशल विकास, शिक्षा और समावेशन की रणनीतियां क्या हों।

चर्चाकारों ने यूरोपीय संघ से लेकर अमेरिका तक एआई के आगमन के कारण मानव पूंजी के कौशल विकास के वैश्विक मॉडलों का भी अध्ययन किया और भारत के लिए प्रासंगिक अंतर्दृष्टि साझा की। साथ ही बहु-हितधारक सहयोग को प्रोत्साहित करने, ऐसे शासन मॉडल विकसित करने पर जोर दिया गया जो न केवल कानूनी रूप से सुदृढ़ हों, बल्कि सामाजिक रूप से जिम्मेदार और तकनीकी रूप से व्यवहार्य भी हों। इसके अलावा भारत को वैश्विक एआई हब और प्रतिभा के निर्यातक के रूप में स्थापित करने, एआई-एकीकृत शिक्षा में अग्रणी बनने और एआई स्किलिंग व अनुसंधान में वैश्विक मानक स्थापित करने पर भी विचार-विमर्श किया गया।