पुरानी कर मांगों को वापस लेने के कदम से छोटे करदाताओं के बड़े वर्ग को होगा लाभ

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नई दिल्ली, 1 फरवरी (आईएएनएस) । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को अंतरिम बजट पेश करते हुए 25,000 रुपये तक की पुरानी बकाया कर मांगों को खत्म करने और वापस लेने की घोषणा की, जो अभी भी सरकार की किताबों में ‘बकाया कर मांग’ के रूप में दिखाई दे रही हैं। खेतान एंड कंपनी के पार्टनर संजय सांघवी ने कहा, इससे छोटे और मध्यम स्तर के करदाताओं के एक बड़े वर्ग को राहत मिलेगी।

सीतारमण ने कहा कि बड़ी संख्या में छोटी, गैर-सत्यापित, गैर-समाधान या विवादित प्रत्यक्ष कर मांगें हैं, उनमें से कई वर्ष 1962 से पहले की हैं, जो अभी भी किताबों में बनी हुई हैं, इससे ईमानदार करदाताओं को चिंता हो रही है और बाद के वर्षों के रिफंड में बाधा उत्पन्न कर रहा है।

उन्होंने अपने अंतरिम बजट भाषण में कहा,“मैं वित्तीय वर्ष 2009-10 तक की अवधि के लिए 25,000 रुपये तक और वित्तीय वर्ष 2010-11 से 2014-15 तक की अवधि के लिए 10,000 रुपये तक की बकाया प्रत्यक्ष कर मांगों को वापस लेने का प्रस्ताव करता हूं। इससे लगभग एक करोड़ करदाताओं को लाभ होने की उम्मीद है।”

खेतान एंड कंपनी के पार्टनर सुदीप्त भट्टाचार्जी ने कहा कि जैसा कि उम्मीद थी, अंतरिम बजट में मुख्य रूप से कुछ कर प्रस्ताव शामिल थे।

हालांकि, वित्त विधेयक 2024 के तहत जीएसटी कानून में एक उल्लेखनीय प्रस्तावित संशोधन लागू होने के बाद व्यवसायों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।

वर्तमान जीएसटी नियमों के तहत, एक ही कानूनी इकाई की विभिन्न शाखाओं को अलग-अलग कर योग्य संस्थाएं माना जाता है, जिससे उन्हें एक-दूसरे को आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं/सेवाओं पर जीएसटी चार्ज करने की आवश्यकता होती है (जिसे ‘क्रॉस-चार्ज’ के रूप में जाना जाता है)।

इसके अतिरिक्त, विभिन्न शाखाओं के बीच इनपुट जीएसटी क्रेडिट वितरित करने के लिए ‘इनपुट सेवा वितरक’ (आईएसडी) की अवधारणा भी है। आईएसडी बनाम क्रॉस-चार्ज पद्धतियों पर विवाद उत्पन्न हुए हैं, जिससे जीएसटी परिषद को हाल ही में स्पष्ट करना पड़ा कि करदाताओं के पास चुनने का विकल्प है।

हालांकि, वित्त विधेयक में प्रस्तावित संशोधन का लक्ष्य आईएसडी मार्ग को अनिवार्य बनाना है, जिससे अंतर-शाखा लेनदेन की समीक्षा और व्यावसायिक प्रक्रियाओं और अनुपालन में संभावित बदलाव की आवश्यकता होगी।

भट्टाचार्जी ने कहा, यह परिवर्तन करदाताओं और जीएसटी अधिकारियों के बीच नए विवादों को भी जन्म दे सकता है, जो कार्यान्वयन से पहले स्पष्टीकरण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।