बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने पर शिक्षाविदों और विद्वानों ने जताई खुशी, बोले- ‘स्वागत योग्य है कदम’

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नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने इस महीने की शुरुआत में बंगाली समेत पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया था। इस फैसले पर शिक्षाविदों, विद्वानों समेत 90 प्रतिष्ठित नागरिकों की प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने इसे स्वागत योग्य कदम बताया है।

प्रोफेसरों, विद्वानों, शिक्षाविदों और अन्य से जुड़े प्रतिष्ठित नागरिकों के एक समूह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने का फैसला एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है, क्योंकि यह बंगाली भाषा की समृद्धि और सांस्‍कृतिक महत्‍व को स्वीकार करता है।

एक संयुक्त बयान में देश की 100 प्रमुख हस्तियों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने इसे एक ऐसी भाषा के लिए सही श्रद्धांजलि बताया है, जो करीब एक हजार साल से चली आ रही है।

मशहूर शिक्षाविदों और विद्वानों में अर्थशास्त्री, संस्कृत विद्वान और लेखक प्रोफेसर बिबेक देबरॉय; प्रख्यात इतिहासकार और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस पद्म श्री प्रोफेसर दिलीप कुमार चक्रवर्ती; अर्थशास्त्री, लेखक, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अशोक कुमार लाहिड़ी; सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी और पूर्व राजदूत भास्वती मुखर्जी; और नीदरलैंड में पूर्व भारतीय राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी (सेवानिवृत्त) शामिल हैं।

मशहूर शिक्षाविदों और विद्वानों ने केंद्र सरकार द्वारा 3 अक्टूबर को लिए गए फैसले पर खुशी जाहिर की। उन्होंने बंगाली भाषा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, रवींद्रनाथ टैगोर और काजी नजरुल इस्लाम जैसी महान हस्तियों के योगदान को सराहा।

उन्होंने एक बयान में कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद विश्व भारती शांतिनिकेतन के आचार्य भी हैं। उनके ईमानदार प्रयासों के माध्यम से बंगाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। हम इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए उनकी सराहना करते हैं।”

उन्होंने कहा, “बंगाली साहित्य ने सदियों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया है। इस भाषा की मिठास हमारे दिलों को छूती है। समय बीतने के साथ ही बंगाली भाषा ने अन्य भाषाओं के आयाम भी अपने-आप में समाहित कर लिए हैं। भारत सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले से पूरी दुनिया के बंगाली खुश हैं।”

उनके बयान में भारत की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विरासत में बंगाली के महत्व पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि बंगाली साहित्य ने अपनी गीतात्मक और साहित्यिक शक्ति के साथ पीढ़ियों को गहराई से प्रभावित किया है, जिसमें समय के साथ अन्य भाषाओं का मिश्रण भी शामिल रहा है।