इस्लामाबाद, 31 अक्टूबर (आईएएनएस) पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और पंजाब प्रांत को देश में पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक स्थान बताया गया है। पाकिस्तान में पिछले साल की तुलना में इस बार पत्रकारों और अन्य मीडियाकर्मियों पर हमलों और उल्लंघनों  के मामलों में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
इंटरनेशनल मीडिया सपोर्ट (आईएमएस) की सहायता से तैयार की गई फ्रीडम नेटवर्क की वार्षिक दंडमुक्ति रिपोर्ट 2025 में इन दोनों जगहों को सबसे खतरनाक जगह बताया गया है।
2 नवंबर को मनाए जाने वाले ‘पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए दंड से मुक्ति समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ से पहले आई ये रिपोर्ट शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सरकार के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति को दर्शाती है।
पाकिस्तान के प्रमुख दैनिक डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, “उल्लंघन के कम से कम 142 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। फरवरी 2024 के आम चुनावों के बाद मीडिया के लिए प्रतिकूल माहौल और भी बढ़ गया है, जिसने पाकिस्तान के लगभग हर क्षेत्र को पत्रकारिता के लिए असुरक्षित बना दिया, और सभी प्रांतों और क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं।”
रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान संघीय सरकार के पहले वर्ष के दौरान विवादास्पद इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम (पेका) के तहत 30 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के खिलाफ कम से कम 36 औपचारिक कानूनी मामले दर्ज किए गए।
अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में इस अधिनियम में संशोधन किया था। इसके प्रावधान पत्रकारों के लिए और कठोर हो गए, जिसकी मीडिया पेशेवरों और अधिकार कार्यकर्ताओं ने आलोचना की थी।
इन 36 मामलों में से 22 मामले पेका के तहत और 14 पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) के तहत दर्ज किए गए थे। पेका के ज्यादातर मामलों में पंजाब के मीडिया पेशेवरों को निशाना बनाया गया, जबकि सभी पीपीसी भी इसी प्रांत में दर्ज किए गए थे।
‘इम्पुनिटी रिपोर्ट 2025: पाकिस्तान के पत्रकारिता जगत में अपराध और सजा’ के नाम से इस रिपोर्ट को रिलीज किया गया है। इसमें पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए दंडमुक्ति और इस मुद्दे से निपटने के प्रयासों के बारे में बताया गया।
सितंबर की शुरुआत में, पत्रकारों और अधिकार कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता पर बढ़ते प्रतिबंधों पर चिंता व्यक्त की थी। कुछ ने वर्तमान स्थिति की तुलना जनरल जियाउल हक के सैन्य शासन के दौरान अनुभव की गई मीडिया सेंसरशिप से की।
पत्रकारों और अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस्लामाबाद में आयोजित कार्यक्रमों के दौरान इन चिंताओं को उजागर किया। कार्यक्रम के दौरान दो वरिष्ठ पत्रकार और ट्रेड यूनियन नेता निसार उस्मानी और सीआर शम्सी को याद किया गया। इन दोनों पत्रकारों ने मार्शल लॉ के दौर में प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी।
नेशनल प्रेस क्लब में एक सेमिनार के दौरान, पाकिस्तान फेडरल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (पीएफयूजे) और रावलपिंडी-इस्लामाबाद यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आरआईयूजे) के वर्तमान और पूर्व पदाधिकारियों ने दोनों पत्रकारों को श्रद्धांजलि दी और स्वतंत्र प्रेस के लिए उनके संघर्ष के बारे में बात की।
कार्यक्रम में शामिल लोगों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए सरकार द्वारा लगाए गए उपायों का सामूहिक रूप से विरोध करने के लिए पत्रकारों से एकजुटता का आह्वान किया।
उन्होंने मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंधों का विरोध करने और इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम (पीईसीए) में हालिया संशोधनों जैसे विवादास्पद कानूनों के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का भी संकल्प लिया।

 












