सरदार पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में ‘एकता मार्च’ में शामिल हुए गुजरात के डिप्टी सीएम

0
5

वडोदरा, 1 दिसंबर (आईएएनएस)। सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मंगलवार को वडोदरा में वरनामा से मेनपुरा तक एकता मार्च निकाला गया। गुजरात के उपमुख्यमंत्री हर्ष संघवी भी 14 किलोमीटर लंबी इस पदयात्रा में शामिल हुए।

मार्च पूरा करने के बाद संघवी ने मेनपुरा में ‘सरदार गाथा’ सभा को संबोधित किया और सरदार पटेल के जीवन, नेतृत्व और विरासत पर प्रकाश डाला।

संघवी ने कहा कि सरदार पटेल के दृढ़ निर्णयों और राष्ट्र के एकीकरण के अथक प्रयासों के कारण ही आज भारतीय बिना किसी प्रतिबंध के एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने वर्षों तक पटेल के योगदान और विचारों को व्यवस्थित रूप से दबाया, जिससे युवाओं को राष्ट्रीय एकता में उनकी निर्णायक भूमिका के बारे में जानने से रोका गया।

उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटेल के सम्मान में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण करके उनकी विरासत को पुनर्जीवित किया है और अब, ‘एकता मार्च’ के माध्यम से यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनका ऐतिहासिक योगदान सभी पीढ़ियों के नागरिकों तक पहुंचे।

सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के पटेल के संकल्प को याद करते हुए संघवी ने कहा कि आज जो मंदिर खड़ा है, वह उसी संकल्प का परिणाम है। उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश को 2047 तक भारत को एक विकसित भारत में बदलने का विजन दिया है, एक ऐसा लक्ष्य जिसके लिए एकता, कड़ी मेहनत, आत्मनिर्भरता और ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों को अपनाने की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी।

संघवी ने पदयात्रा मार्ग पर स्थित ग्रामीणों से सरदार पटेल के आदर्शों से प्रेरित होकर कम से कम एक ऐतिहासिक प्रतिज्ञा लेने का आग्रह किया और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने तथा भारत की विकास यात्रा में योगदान देने के लिए सामूहिक संकल्प का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल के कार्यों ने उनके राजनीतिक उत्थान और राष्ट्रीय विरासत, दोनों की नींव रखी।

अहमदाबाद में एक वकील के रूप में शुरुआत करने वाले पटेल खेड़ा सत्याग्रह के प्रमुख आयोजक बने और बाद में प्रतिष्ठित बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जहां उनके नेतृत्व ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दिलाई।

उन्होंने सहकारी आंदोलनों को मजबूत किया, किसानों के अधिकारों की वकालत की, और एक ऐसा जमीनी नेटवर्क बनाया जिसने ग्रामीण गुजरात को सशक्त बनाया। भारत के पहले गृह मंत्री के रूप में उनकी प्रशासनिक कुशलता की जड़ें गुजरात में उनके द्वारा गढ़ी गई शासन प्रणालियों में भी गहरी थीं। इन प्रयासों ने मिलकर राज्य को उनके नेतृत्व की एक धुरी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक केंद्रीय अध्याय बना दिया।