नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (आईएएनएस)। जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में शुक्रवार को सुनवाई कर रहा था। इस दौरान केन्द्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई टालने की मांग की। कोर्ट ने पहलगाम घटना का जिक्र किया, हालांकि पहले भी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि पहलगाम घटना उनकी सरकार के रहते हुई। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील पर ऐतराज जताया। उन्होंने कहा कि ‘ये उनकी सरकार’ शब्द से उनको ऐतराज है। ये याचिकाकर्ता की सोच को सामने लाता है। उन्हें उनकी सरकार के बजाय ‘हमारी सरकार’ शब्द का उपयोग करना चाहिए।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि जम्मू कश्मीर की 99 प्रतिशत से ज्यादा आबादी भारत की सरकार को अपनी ही सरकार मानती है। जम्मू कश्मीर कॉलेज के टीचर जहूर अहमद भट्ट और एक्टिविस्ट खुर्शीद अहमद मलिक की ओर से दायर अर्जी में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वो जल्द जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करे।
याचिकाकर्ता के मुताबिक सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया था कि जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, लेकिन आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी केंद्र सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।
जहूर अहमद भट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में लगातार हो रही देरी “जम्मू और कश्मीर के नागरिकों के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है और संघवाद की अवधारणा का भी उल्लंघन कर रही है।”
आवेदकों का तर्क है कि समयबद्ध सीमा के भीतर राज्य का दर्जा बहाल न करना संघवाद का उल्लंघन है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।