नई दिल्ली, 5 नवंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने महिलाओं से जुड़े साइबर अपराधों को रोकने के लिए मौजूदा कानूनों में बदलाव की सिफारिश की है। यह सिफारिश विधि एवं न्याय मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय को भेजी गई है।
रिपोर्ट एक साल लंबे राष्ट्रीय परामर्श का नतीजा है। इसका मकसद भारत के साइबर कानूनों को महिलाओं के नजरिए से मजबूत बनाना है। परामर्श में पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, गुजरात, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में आठ क्षेत्रीय बैठकें हुईं। इसके बाद नई दिल्ली के विज्ञान भवन और गुवाहाटी के राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में दो राष्ट्रीय बैठकें आयोजित की गईं।
एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष विजया राहतकर ने कहा कि डिजिटल दुनिया ने महिलाओं को सीखने, कारोबार करने और अपनी बात कहने के नए मौके दिए हैं। लेकिन, इससे खतरे भी बढ़े हैं। हमें सुनिश्चित करना होगा कि तकनीक महिलाओं को सशक्त बनाए, न कि शोषण का जरिया बने। इस रिपोर्ट से हम एक ऐसे साइबर वातावरण की कल्पना करते हैं, जहां कानून अपराधियों को सजा दें और महिलाओं की इज्जत बचाएं। जागरूकता से डर खत्म हो और हर महिला आत्मविश्वास से डिजिटल दुनिया में कदम रखे।
अंतिम बैठक में विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मौजूद थे। उन्होंने एनसीडब्ल्यू के प्रयासों की तारीफ की और महिलाओं की डिजिटल सुरक्षा के लिए सुधारों को आगे बढ़ाने का वादा किया।
परामर्श में न्यायाधीश, वरिष्ठ वकील, तकनीकी विशेषज्ञ, पुलिस अधिकारी, शिक्षाविद और नागरिक समाज के सैकड़ों लोग शामिल हुए। उनकी सलाह से दो सौ से ज्यादा व्यावहारिक सिफारिशें तैयार हुईं। ये सिफारिशें कानूनी और संस्थागत कमियों को दूर कर महिलाओं पर लक्षित साइबर अपराधों से निपटने में मदद करेंगी।
सिफारिशों में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत महिलाओं और बच्चों पर अपराधों के लिए धारा 66, 66सी, 66डी और 67 में सख्त सजा का प्रस्ताव है। निजी फोटो साझा करने की धमकी पर कार्रवाई और पीड़ितों के लिए मुआवजा फंड बनाना शामिल है। जिला स्तर पर मनोवैज्ञानिक और फोरेंसिक विशेषज्ञ नियुक्त करने की बात कही गई है।
आईटी नियम 2021 में यूजर डेटा तीन सौ साठ दिन तक रखना और गोपनीयता मजबूत करना प्रस्तावित है। खाता सत्यापन अनिवार्य करना और एआई से बनी फर्जी तस्वीरों को नियमों में शामिल करना जरूरी बताया गया है। लिंग आधारित उत्पीड़न, प्लेटफॉर्म पारदर्शिता, एआई जांच, पीड़ित मदद और विदेशी कंटेंट नियंत्रण के नए नियम सुझाए गए हैं।
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 में संवेदनशील डेटा और लिंग आधारित नुकसान की परिभाषा दी जाए। सख्त सहमति और 24 घंटे में उल्लंघन रिपोर्ट करना अनिवार्य हो। 12 घंटे में गैर सहमति कंटेंट हटाना जरूरी बताया गया है। डेटा दुरुपयोग पर ग्रेडेड सजा और गुमनाम शिकायत का विकल्प रखा जाए। पीओएसएच अधिनियम 2013 में डिजिटल उत्पीड़न और वर्क फ्रॉम होम को कवर करना शामिल है।
आंतरिक समितियों के लिए डिजिटल सबूत नियम और तकनीकी मदद दी जाए। महिलाओं का अश्लील चित्रण अधिनियम 1986 में ऑनलाइन और ओटीटी कंटेंट शामिल हो। 48 घंटे में कार्रवाई और प्लेटफॉर्म की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। पीओसीएसओ अधिनियम 2012 में डिजिटल हेरफेर और ऑनलाइन ग्रूमिंग को अपराध माना जाए। सजा बढ़ाई जाए और बच्चे की गुमनामी सुरक्षित रहे। रिपोर्ट न करने पर सोशल मीडिया को सजा का प्रावधान हो।
भारतीय न्याय संहिता 2023 में शिकायतकर्ता की पहचान छिपाई जाए। साइबरबुलिंग, ट्रोलिंग, डीपफेक और गोपनीयता उल्लंघन शामिल हों। प्लेटफॉर्म को छत्तीस घंटे में हानिकारक कंटेंट हटाना पड़े। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में मेटाडेटा को सबूत माना जाए और तेज फोरेंसिक जांच हो। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में पीड़ित बयान जल्द रिकॉर्ड हों और डिजिटल सबूत प्रबंधन बेहतर हो।
रिपोर्ट डिजिटल अधिकार, गोपनीयता, प्लेटफॉर्म जवाबदेही, फोरेंसिक क्षमता और जागरूकता पर जोर देती है। यह 2024-25 कानून समीक्षा के लिए सबसे बड़ी समीक्षा है।





