मुंबई, 31 जुलाई (आईएएनएस)। मालेगांव विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को एनआईए कोर्ट द्वारा बरी किए जाने पर एडवोकेट प्रशांत मग्गू ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह मामला गलत तरीके से गढ़ा गया था और अदालत के सामने झूठे सबूत पेश किए गए थे।
उन्होंने आगे कहा कि अदालत ने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई और जांच के आदेश जारी किए हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन लोगों ने इस साजिश को अंजाम दिया था, अब उनकी जांच होगी। हमें उम्मीद है कि इस मामले के लिए जो सही मायने में दोषी है, उन्हें सजा देने का काम किया जाएगा। न्याय मिलने में जरूर 17 साल का समय लगा, लेकिन आज के फैसले से सत्य की जीत हुई है और असत्य की हार हुई है।
वहीं एडवोकेट जेपी मिश्रा ने कहा कि अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि जांच अधिकारी ने सबूत इकट्ठा करने के बजाय उन्हें गढ़ा। इस बात की जांच होनी चाहिए कि वह कितना दोषी है और अगर वह दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही आरोपियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि 17 साल के संघर्ष के बाद यह साबित हो गया है कि भगवा आतंकवाद जैसी कोई चीज होती ही नहीं। कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को गढ़कर लोगों को गलत तरीके से फंसाया था। न्यायालय न्याय का मंदिर है। बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकते और आज अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि इस मामले में सभी आरोपियों को ‘भगवा आतंकवाद’ का नैरेटिव गढ़कर फंसाया गया था। अब यह साबित हो गया है कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकते।
वहीं आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि मालेगांव विस्फोट मामले में आज आए अदालती फैसले से सच्चाई स्पष्ट हो गई है। कुछ लोगों ने निजी और राजनीतिक स्वार्थों से प्रेरित होकर जानबूझकर मामले को उलझाया और विस्फोट को हिंदू धर्म और संपूर्ण हिंदू समुदाय से जोड़ने का अनुचित प्रयास किया। आज सच्चाई की जीत हुई है।