मुंबई, 28 अगस्त (आईएएनएस)। बॉलीवुड की मशहूर सिंगर ऋचा शर्मा का नाम सुनते ही कई हिट गाने याद आ जाते हैं। ‘साजन के घर जाना है’, ‘माही वे’, ‘छलका, छलका रे’ जैसे गानों में उन्होंने अपनी आवाज से एक अलग ही जादू बिखेरा।
हालांकि शुरुआती दिनों में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। ऋचा की गायकी का सफर जगरातों में गाने से शुरू हुआ था, जहां उन्हें पहला गाना गाने के लिए महज 11 रुपए मिले थे।
ऋचा शर्मा का जन्म 29 अगस्त 1980 को हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ था। उनके पिता पंडित दयाशंकर एक जाने-माने कथावाचक और शास्त्रीय गायक थे। बचपन से ही ऋचा के मन में संगीत के प्रति गहरी रुचि थी। उनके पिता ने उन्हें संगीत की शिक्षा दी। वह रोज सुबह उन्हें रियाज कराते थे। ऋचा बचपन में जगरातों में गाना गाया करती थीं, ताकि परिवार की आर्थिक मदद कर सकें। यही वह दौर था, जब उन्होंने अपने पहले गाने के लिए केवल 11 रुपए मिले।
यह छोटी सी रकम उनके लिए बहुत बड़ी थी। एक इंटरव्यू में ऋचा ने बताया था कि उन्होंने पहली बार कमाए 11 रुपए आज भी संभालकर रखे हैं।
ऋचा ने अपनी शिक्षा के साथ-साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी ट्रेनिंग ली। उन्होंने दिल्ली के गंधर्व महाविद्यालय से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। 1994 में ऋचा ने मुंबई आकर अपने सपनों को पूरा करने की ठानी। मुंबई में शुरुआती दिनों में उन्होंने कई ऑडिशन दिए, लेकिन कहीं चांस नहीं मिला। एक बार की बात है कि ऋचा को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम माता की चौकी में गाने के लिए बुलाया गया था। यहां निर्देशक सावन कुमार को उनकी आवाज बहुत पसंद आई और उन्होंने ऋचा शर्मा को 1996 में रिलीज हुई अपनी फिल्म ‘सलमा पे दिल आ गया’ में गाने का मौका दे दिया।
ऋचा शर्मा के करियर में उस वक्त बड़ा मोड़ आया, जब 1999 में उन्होंने एआर रहमान की फिल्म ‘ताल’ में ‘नी मैं समझ गई’ गाना गाया। इस गाने को लोगों ने बेहद पसंद किया और ऋचा को बॉलीवुड में एक अलग पहचान मिली।
इसके बाद उन्होंने कई बड़ी फिल्मों के लिए गाने गाए, जिनमें ‘जन्नत’, ‘साथिया’, ‘माई नेम इज खान’ और ‘कल हो ना हो’ शामिल हैं। उनकी आवाज की खासियत यह है कि वे हर तरह के म्यूजिक में खुद को एडजस्ट कर सकती हैं। चाहे वह क्लासिकल हो या सूफी, भजन हो या रोमांटिक गीत, हर तरह के गाने में ऋचा की आवाज का उनके फैंस पर जादू सा असर होता है।
ऋचा अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता को देती हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता हमेशा कहते थे कि ‘अगर तुम्हें प्लेट में बनी बनाई रोटी मिल जाएगी, तो क्या मजा? मजा तो तब है, जब तुम खुद बीज बो, काटो, पीसो, पकाओ और फिर खाओ।’ उनके पिता उन्हें ‘झांसी की रानी’ कहा करते थे।