नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। सरयू नदी के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के अकबरपुर जिले में 23 मार्च 1910 को जन्मे राममनोहर लोहिया सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, एक विचारधारा थे। उनके पिता हीरालाल की देशभक्ति और मां दीवान देवी के असमय निधन ने उनके बचपन को विद्रोही बनाया।
गांव की मिट्टी में पले-बढ़े लोहिया ने किसानों की तकलीफ और जातिगत भेदभाव को करीब से देखा, जिसने उनके दिल में समाजवाद की चिंगारी जलाई। बर्लिन में पढ़ाई से लेकर स्वतंत्रता संग्राम की जेलों तक, लोहिया ने हर कदम पर अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की।
उनकी कलम और कर्म ने न केवल ब्रिटिश शासन को चुनौती दी, बल्कि आजादी के बाद भी जाति, असमानता और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ जंग छेड़ी।
राममनोहर लोहिया का बचपन अकबरपुर के ग्रामीण परिवेश में बीता, जहां उन्होंने किसानों की सिसकियां सुनीं, जाति की बेड़ियां देखीं। यही अनुभव उनके हृदय में समाजवाद का बीज बो गया। शिक्षा के सफर में लोहिया ने कभी किताबों को ही सीमित नहीं रखा। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद वे बर्लिन पहुंचे।
जर्मनी की सड़कों पर नाजीवाद का साया मंडराने लगा था। लोहिया ने वहां अर्थशास्त्र और राजनीति में डॉक्टरेट हासिल की, लेकिन किताबों से ज्यादा जीवन से सीखा। जर्मन भाषा सीखने में मात्र तीन महीने लगाए, प्रोफेसर जोम्बार्ट को चकित कर दिया। लेकिन हिटलर के उदय ने उन्हें झकझोर दिया। वे भारत लौटे और नई क्रांति के प्रणेता बने।
1934 में वे भारत पहुंचे तो सीधे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) से जुड़े। जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर उन्होंने समाजवाद को भारतीय मिट्टी से जोड़ा। लोहिया का मानना था, “समाजवाद सिर्फ किताबी नहीं, बल्कि कर्म का धर्म है।” उनकी कलम ने ‘कांग्रेस सोशलिस्ट’ पत्रिका को नई जान दी, जहां वे अन्याय की जड़ों पर प्रहार करते।
देश आजाद होने के बाद वो जवाहरलाल नेहरू के कांग्रेस शासन में असंतुष्ट रहे। उन्होंने ‘सप्त क्रांति’ का नारा दिया। जाति उन्मूलन, भाषा नीति में हिंदी को प्राथमिकता, छोटे राज्यों का गठन ये उनके सपने थे वो गोवा मुक्ति आंदोलन में सक्रिय रहे, जहां पुर्तगालियों के खिलाफ आवाज बुलंद की।
राममनोहर लोहिया ने महिलाओं के अधिकारों पर जोर दिया और कहा कि समाजवाद बिना लैंगिक समानता के अधूरा है। 12 अक्टूबर 1967 को नई दिल्ली में उनका निधन हुआ, लेकिन लोहिया की विरासत अमर है। आज जब जाति की दीवारें खड़ी हैं, भाषाई विवाद सुलगते हैं तो लोहिया की आवाज गूंजती है।
राम मनोहर लोहिया सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि विद्रोह और समानता का दर्शन थे। उनका जीवन साबित करता है कि एक व्यक्ति की कलम और कर्म से क्रांति आ सकती है।