नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। जैसे कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि में मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, उसी तरह हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर स्कंद षष्ठी पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भगवान कार्तिकेय को समर्पित है, जिन्हें स्कंद, कुमार, मुरुगन, या सुब्रह्मण्य के नाम से भी जाना जाता है और इसे विशेष रूप से साउथ की तरफ मनाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से संतान प्राप्ति, संतान की लंबी आयु, शत्रुओं पर विजय और धन-वैभव की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि इस दिन पूजा करने से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पापों से भी मुक्ति मिल सकती है।
स्कंद पुराण में इसकी कथा का वर्णन दिया गया है, जिसमें बताया गया है कि शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। वे एक महान योद्धा थे, जिन्होंने तारकासुर नामक दैत्य का वध किया। इस विजय के उपलक्ष्य में स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है।
कथा के अनुसार, प्राचीन काल में तारकासुर नाम के एक शक्तिशाली दैत्य ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर महादेव ने उसे वरदान दिया कि उसका वध केवल शिव के पुत्र के हाथों ही हो सकता है। वरदान प्राप्त कर दैत्य ने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उस समय माता सती ने आत्म त्याग कर लिया था और भोलेनाथ भी वैराग्य में लीन थे। उनकी कोई संतान भी नहीं थी।
तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे थे, जहां उन्होंने ब्रह्म देव को बताया कि तारकासुर का वध केवल शिव पुत्र ही कर सकता है। लेकिन समस्या यह थी कि वैरागी शिव को गृहस्थ जीवन में कैसे लाया जाए।
इसके बाद देवताओं ने माता पार्वती (जो सती का अवतार थीं और शिव को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं) और शिव के विवाह की योजना बनाई। इसके लिए प्रेम के देवता कामदेव (मन्मथ) को भेजा गया। कामदेव ने शिव पर अपने पुष्प बाण चलाए, जिससे शिव में प्रेम की भावना जागृत हुई, लेकिन छल का पता चलने पर क्रोधित शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे कामदेव भस्म हो गए।
कामदेव की पत्नी रति और देवताओं के अनुरोध पर शिव ने कामदेव को बिना शरीर के जीवित कर दिया और माता पार्वती से विवाह के लिए सहमत हो गए।
विवाह के पश्चात भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख से छह चिंगारियां उत्पन्न कीं। इन चिंगारियों को अग्नि देवता ने सरवण नदी के ठंडे जल में ले जाकर ठंडा किया, जिससे छह बच्चों का जन्म हुआ। इनमें पांच लड़कियां और एक लड़का था, जो भगवान कार्तिकेय थे। वे बड़े होकर एक बुद्धिमान और शक्तिशाली योद्धा बने।
उन्होंने तारकासुर के साथ भयंकर युद्ध किया और अंत में उसका वध कर दिया। तारकासुर की मृत्यु के बाद उसके शरीर से एक मोर प्रकट हुआ, जिसे कार्तिकेय ने अपना वाहन बनाया। इस विजय के बाद देवताओं ने कार्तिकेय को सेनापति घोषित किया। चूंकि तारकासुर का वध शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
स्कंद षष्ठी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशेष है। स्कंद पुराण में नारद-नारायण संवाद के अनुसार, यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं को दूर करने में सहायक होगा। 14वीं-16वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ में इसे ‘निर्णयामृत’ कहा गया है, जिसमें बताया गया है कि भाद्रपद मास की स्कंद षष्ठी को भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पापों से मुक्ति मिलती है।
वहीं ब्रह्म पुराण के अनुसार, सभी शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर कार्तिकेय की पूजा करने से बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर होता है।













