अयोध्या, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। यूनेस्को द्वारा दीपावली को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किए जाने को लेकर देशवासी खुश हैं। धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जगत से जुड़े विभिन्न संगठनों और संतों-महंतों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर मजबूत करने वाला ऐतिहासिक कदम बताया है।
श्रीहनुमान गढ़ी मंदिर के महंत राजू दास ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में कहा कि जिस तरह प्रधानमंत्री ने अयोध्या को विश्व पटल पर स्थापित करने का सपना देखा था, उसी तरह सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस सपने को सच करने के लिए काम किया है, जिसकी शुरुआत एक दीये से हुई और अब यह 26 लाख से ज्यादा दीयों तक पहुंच गया है। आज, यूनेस्को द्वारा इस त्योहार को मान्यता देने और इसे शामिल करने पर, हम सनातन समुदाय को दिल से धन्यवाद और बधाई देते हैं। यह मान्यता अयोध्या में होने वाले एक पवित्र त्योहार को दुनिया के नक्शे पर मजबूती से जगह देती है, जो सच में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
सीताराम दास महाराज कहते हैं कि दीपावली कोई ऐसा त्योहार नहीं है जो आज शुरू हुआ हो। यह सदियों से चला आ रहा है। दीपावली किसी की पहचान पर निर्भर नहीं करती। यह त्रेता युग से मनाई जा रही है। यह अच्छी बात है कि यूनेस्को ने इसे शामिल किया है, लेकिन दीपावली हमेशा से सनातन धर्म के मूल्यों का प्रतीक रही है, जो सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना करता है। यूनेस्को का शामिल करना स्वागत योग्य है। दीपावली सदियों से एक सार्वभौमिक उत्सव रही है।
करपात्री महाराज ने कहा कि दीपावली का त्योहार बहुत पुराना है और भगवान श्रीराम के समय से मनाया जा रहा है। यूनेस्को ने दीपावली को मान्यता देकर और इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल करके बहुत अच्छा काम किया है। संगठन की ओर से हम यूनेस्को के अधिकारियों और अध्यक्षों को अपना समर्थन और आशीर्वाद देते हैं।
आचार्य नारायण मिश्रा महाराज कहते हैं कि यूनेस्को ने दीपावली के त्योहार को धार्मिक उत्सवों की सूची में शामिल किया है, और यह सच में सराहनीय है। यह एक बहुत अच्छा कदम है। मैं सनातन धर्म की परंपराओं का सम्मान करने के लिए यूनेस्को को बधाई देता हूं, और मुझे उम्मीद है कि वे भविष्य में भी ऐसी और सनातन परंपराओं को पहचानते रहेंगे और बढ़ावा देते रहेंगे।

