जो किसी ने नहीं किया वो हम करेंगे; आदित्य एल1 बनाने वाले वैज्ञानिक का दावा, क्यों है यह सबसे स्मार्ट

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नई दिल्ली

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने पहले सौर मिशन आदित्य एल1 को लॉन्च करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद लोगों की निगाहें और उम्मीदें आदित्य एल1 पर भी टिकी हैं। शनिवार सुबह 11.50 पर आदित्य एल1 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा। 15 लाख किलोमीटर की यात्रा कर आदित्य एल1 अंतरिक्ष के उस 'झरोखे' एल1 (लैग्रेंज प्वाइंट -1) तक पहुंचेगा जहां से सूर्य को बेहद साफ और सहज तरीके से देखा जा सकता है। एल1 प्वाइंट पर पहुंचकर मिशन पहली बार अपने निकटतम तारे और उसके आसपास के विभिन्न डेटा और पहलुओं का अध्ययन करेगा। आदित्य एल1 सौर कोरोना पर डेटा के साथ-साथ विजुअल इमिशन लाइन का अध्ययन करेगा। इस काम के लिए आदित्य एल1 में उन्नत उपकरण लगे हैं। आखिर यह कैसे काम करेगा आइए इस बारे में जानते हैं बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) के प्रोफेसर जगदेव सिंह से, जिन्होंने इंटरव्यू में मिशन के बारे में बताया है।

जगदेव सिंह के प्रारंभिक प्रयास के परिणामस्वरूप विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ पेलोड का विकास किया गया। यह प्राइमरी पेलोड है जिसे आदित्य-एल1 के जरिए अंतरिक्ष में ले जाया जाएगा। लॉन्च से पहले जयदेव सिंह ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि वह मिशन की सफलता को लेकर आश्वस्त हैं। जगदेव सिंह ने बातचीत में मिशन के बारे में बताया है। उन्होंने कहा आदित्य-1 या आदित्य-एल1 सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला समर्पित वैज्ञानिक मिशन है। प्रारंभिक योजना इसे 800 किमी की निचली पृथ्वी कक्षा में लॉन्च करने की थी, लेकिन 2012 में इसरो के साथ चर्चा के बाद, यह निर्णय लिया गया कि मिशन को एल1 (लैग्रेंज प्वाइंट -1) के चारों ओर एक हेलो कक्षा में डाला जाएगा, जो कि पृथ्वी से सूर्य की ओर किमी 15 लाख किलोमीटर पर स्थित है।

सिंह ने कहा, "इस मिशन के साथ, हम सूर्य के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने में सक्षम होंगे, जिसमें तापमान प्लाज्मा भी शामिल है। प्लाज्मा तापमान इतना अधिक क्यों हो जाता है, ऐसी कौन सी प्रक्रियाएं हैं जिनके कारण ठंडा प्लाज्मा गर्म हो जाता है, आदि का अवलोकन करने में सक्षम हो पाएंगे। यह हमें पृथ्वी तक पहुंचने वाले कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) के सटीक समय और गति की सटीक भविष्यवाणी करने में भी मदद करेगा। यह मौसम पूर्वानुमान या आपदा चेतावनी की तरह होगा। भले ही आदित्य-एल1 मिशन की कल्पना 2012 में की गई थी लेकिन इसे आकार देने का आपका काम बहुत पहले ही शुरू हो गया था। क्या आप हमें बता सकते हैं कि यह यात्रा कैसे शुरू हुई?

आदित्य एल1 मिशन की जर्नी को लेकर सिंह ने बताया इस मिशन की शुरुआत 2012 में ही हो गई थी लेकिन इसे अब लॉन्च किया जा रहा है। इसके पीछे क्या कारण है? जगदेव सिंह ने कहा, "16 फरवरी 1980 को भारत में पूर्ण सूर्य ग्रहण हुआ था और उस समय संस्थापक-निदेशक एमके वेनु बप्पू ने मुझे सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन करने के लिए प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया था। मैंने 1980 और 2010 के बीच 10 ऐसे अभियान चलाए… मुझे एहसास हुआ कि ग्रहण के दौरान, आपको केवल 5-7 मिनट तक ही अध्ययन कर सकते हैं। यह व्यवस्थित लंबे समय की रिसर्च को सीमित करता है। ये रिसर्च ज्यादा दिनों तक नहीं हो पाता। मैंने निरंतर अवधि के लिए सूर्य के पहलुओं का अध्ययन करने में मदद करने के मिशन के लिए इसरो और अन्य एजेंसियों में कई लोगों से बात की। 2009 के आसपास ऐसे संभावित मिशन के बारे में बातचीत शुरू हुई और बाद में 2012 में एक ठोस योजना विकसित की गई।"

मिशन की अवधि क्या है और आप सूर्य के अध्ययन को लेकर सिंह ने बताया कि इसमें 127 दिन लगने वाले हैं। उन्होंने कहा, "अंतरिक्ष यान को वहां पहुंचने में 127 दिन लगेंगे और फिर हम कुछ परीक्षण करेंगे। उम्मीद है कि अगले साल फरवरी या मार्च तक डेटा आना शुरू हो जाएगा। आम तौर पर, एक उपग्रह को पांच साल तक रहने की योजना बनाई जाती है, जो कि न्यूनतम मिशन लाइफ है लेकिन यह हमें 10-15 साल तक डेटा प्रदान करना जारी रख सकता है।"

सिंह ने कहा, "चूंकि उपग्रह को एल1 पर रखा जाएगा, जो एक स्थिर बिंदु है, और वहां हमें बहुत अधिक परिश्रम नहीं करना होगा। वह कक्षा स्थिर होगी, इसलिए हम मिशन की लाइफ के अधिक होने की उम्मीद कर रहे हैं। यह पहली बार है जब हम सौर कोरोना, प्लाज्मा के गर्म होने और क्रोमोस्फीयर से कोरोना तक ऊर्जा के ट्रांसफर की भूमिका पर अध्ययन कर पाएंगे। हम शानदार डेटा को हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं। अब तक, कोई भी लगातार इस तरह डेटा हासिल करने में कामयाब नहीं हुआ है।"