गाजियाबाद में वकीलों पर लाठीचार्ज के विरोध में वाराणसी में हड़ताल

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वाराणसी, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। गाजियाबाद में 29 अक्टूबर को जिला जज और अधिवक्ताओं के बीच एक धोखाधड़ी के मामले में आरोपियों की जमानत पर जल्दी सुनवाई करने या किसी दूसरी कोर्ट में केस ट्रांसफर करने की मांग को लेकर नोकझोंक हो गई थी। इसके बाद पुलिस ने अधिवक्ताओं पर लाठीचार्ज कर दिया। पुलिस की कार्रवाई के विरोध में वाराणसी कचहरी में अधिवक्ताओं ने सोमवार को हड़ताल कर दी।

अधिवक्ताओं ने कचहरी परिसर बंद कर दिया। इससे सारे न्यायिक कार्य लगभग ठप हो गए। अधिवक्ता सुभाष चंदन चतुर्वेदी ने गाजियाबाद की घटना का विरोध करते हुए कहा, “गाजियाबाद न्यायालय परिसर में हाल ही में हुई घटना के खिलाफ हम कड़ा विरोध कर रहे हैं। अधिवक्ताओं के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ है, उसकी हम कड़ी निंदा करते हैं और इस मामले में सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। प्रशासन ने अधिवक्ताओं पर लाठीचार्ज किया, और उन्हें कुर्सियों से दौड़ा कर मारा गया। यह न्यायिक प्रणाली के प्रति एक गंभीर हमला है।”

उन्होंने आगे कहा, “हम बेंच की गरिमा की रक्षा की भी मांग कर रहे हैं। न्यायालय में ‘बार एवं बेंच’ की एक निश्चित मर्यादा है, जो तभी तक कायम रहती है जब तक वे अपने डेस्क पर रहते हैं। जब बेंच के सदस्य अदालत से बाहर आकर अधिवक्ताओं के साथ अपशब्द कहते हैं, तो यह न्यायिक व्यवस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाती है। हम चाहते हैं कि न्यायिक प्रणाली में ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। यदि समाज में ऐसे लोग न्याय के पद पर रहेंगे, तो न केवल न्याय की गरिमा, बल्कि न्यायालय की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होगी। इसलिए, आज हम लोगों ने हड़ताल का निर्णय लिया है।”

एक अन्य अधिवक्ता उमेश कुमार पाठक ने बताया, “हमारा विरोध इस बात को लेकर है कि ‘बार और बेंच’ को एक सुसंगत और सहयोगात्मक तरीके से काम करना चाहिए। अधिवक्ताओं ने हमेशा अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण निर्वहन किया है, लेकिन कभी-कभी बेंच अपने पद का दुरुपयोग कर देती है। मेरा उद्देश्य किसी विशेष व्यक्ति पर आरोप लगाना नहीं है, लेकिन एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्तियों को जिम्मेदारी का सही ढंग से पालन करना चाहिए। ऐसा नहीं हो रहा है, विशेषकर गाजियाबाद के माननीय जनपद न्यायाधीश के मामले में।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारा विरोध इसलिए बढ़ा है क्योंकि अगर न्यायालय में अधिक अधिवक्ताओं की बात सही तरीके से नहीं सुनी जाएगी, तो न्याय की उचित प्रक्रिया तक पहुंचना संभव नहीं होगा। अधिवक्ता ने केवल यही कहा कि ‘यदि न्यायालय में पर्याप्त समय नहीं है या वह इस पत्रावली को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर दें। इससे मैं अपनी काबिलियत से किसी अन्य बेंच के सामने अपने मुवक्किल की जमानत करा लूंगा।’ लेकिन जनपद न्यायाधीश ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा कि ‘आप मुझे आदेश देने वाले कौन हैं’।

“यह उचित नहीं है। इसलिए, आज हमने न्यायालय में हड़ताल का निर्णय लिया है। यह केवल गाजियाबाद तक सीमित नहीं है; पूरा उत्तर प्रदेश इस मुद्दे पर एकजुट है। हम सभी अधिवक्ता न्याय की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न नहीं होने देना चाहते। ‘बार और बेंच’ के बीच संबंधों को सुधारने की आवश्यकता है। यदि भविष्य में सुधार नहीं होता है, तो हमारा आंदोलन अनवरत जारी रहेगा। हम हमेशा इस मुद्दे को उठाते रहेंगे और न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखेंगे।”