पंचायत एक समीक्षा : यह केवल एक मनोरंजन-पूर्ण कहानी ही नहीं ग्रामीण भारत का दर्पण है

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डॉ कपिल भार्गव

बड़े परदे से लेकर आज मनोरंजन ओटीटी प्लेटफार्म तक आ पहुंचा है, मनोरंजन के साधनों ने विस्तार लिया है। साथ ही साथ मानसिक रूप से भी मनोरंजन के पैमाने, मायनों, कलाकारों तथा दर्शकों ने भी करवट ली है।

देवानंद, दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र एवं अमिताभ बच्चन की सादगी भरी एवं भोली-भाली अदायगी से लेकर कलाकार आज एनिमल की नृशंसता पूर्वक अदायगी तक का आनंद उठाने लगा है।

ओटीटी प्लेटफॉर्म ने तो घर-घर तक उन सभी दृश्यों को भी पहुंचा दिया है जिनकी कल्पना परिवार में बैठकर देखने की कम से कम भारतीय समाज में न तो थी और न ही शायद होगी, भले ही तथा-कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने इसे सहर्ष स्वीकार्यता प्रदान कर दी हो।

सुखद यह है कि इन सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी कुछ ऐसे कार्यक्रम देखने को मिल जाते हैं जिनकी स्वीकार्यता संपूर्ण भारतीय समाज देने में सक्षम है और उन्हीं कार्यक्रमों में से एक है “पंचायत”!!

पंचायत केवल एक मनोरंजन-पूर्ण कहानी ही नहीं अपितु भारत के प्रत्येक ग्राम का (जहां ग्राम पंचायत हैं) का दर्पण है। आपको हर गांव में कम से कम एक बनराकश(वन राक्षस) अवश्य मिलेगा। कम से कम सरपंची का चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा लिए ग्राम में समाज से जूझता हुआ एक सरपंच या सरपंच की महत्वाकांक्षा रखने वाला अवश्य मिलेगा।

समाज और सिस्टम में फंसा हुआ एक सचिव आपको हर गांव में देखने को मिल जाएगा। वह समाज की नीतियों को, गांव की कुटीर वाली अम्मा, सरपंच की रणनीतियां या विपक्षियों के विरोध अथवा सरकारी कामकाजों के क्रियान्वयन में झुलसता हुआ हमेशा दिखाई देगा।

एक और व्यक्ति है जो सहायक सचिव के रूप में रहता है वह तो और अधिक पूरे गांव की परिधि पर एक पैर से संतुलन बनाता हुआ तथा दूसरे पैर से सरकारी योजनाओं के शीर्षासन में सर्वदा लगा रज्ञता है।

और हां मुख्य रूप से वह महिला जो वास्तविक सरपंच होती है अपने परिवार का संतुलन बनाए हुए अपनी सरपंची में भी पूरा योगदान देने का प्रयास करती है।

इन सबके अलावा जो मूल बात है, वह है सत्ताधारी विधायक अथवा क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखे हुए विधानसभा क्षेत्र का सत्ता-लोलुप जनप्रतिनिधि। उसकी मूल आत्मा विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक गांव में कहीं ना कहीं विचरण करती रहती है। और उसके जयकारे लगाने वाले अथवा चरण चंचुक समर्थक एवं राजनीति में उतर रहे छोटे-छोटे नटवा (बुंदेली-बैलों की किशोर अवस्था) अपनी उपस्थिति हर एक गांव में रखते ही हैं।

उपर्युक्त चरित्र चित्रण पंचायत में दिखाए गए प्रत्येक दृश्य को आपके समक्ष उतार रहे होंगे। पंचायत सीरिज की यही खूबसूरती मुझे लगी कि इसने भारत के प्रत्येक गांव का कहीं ना कहीं चित्रण अवश्य किया है और वह भी वास्तविकता के धरातल पर। भले ही चलचित्र प्रारंभ होने से पूर्व डिस्क्लेमर में घटनाओं या पत्रों का संबंध किसी वास्तविक व्यक्ति या घटना से नहीं है लिखा जाता है लेकिन फिर भी यही कहूंगा कि इस चलचित्र का प्रत्येक गांव या ग्राम पंचायत से कहीं ना कहीं संबंध अवश्य निकल आएगा।

आज भारत में असंख्य संख्या में विनोद विचरण करते हुए दिखाई देते हैं। पंचायत में विनोद एक अहम पात्र है जो समस्या होने पर किसी के साथ तो हो जाता है लेकिन वह जहां है और उसे क्या करना चाहिए तथा वह क्या कर रहा है? इन सब के बीच में वह लकीर खींचने में अनभिज्ञ होता है।

उसकी छोटी सी व्यक्तिगत समस्या को कितने बड़े कैनवास पर उकेर दिया जाता है कि उतनी तो वह मेहनत करके अपनी उस समस्या का स्वयं ही हल निकाल सकता था। लेकिन वह वहां जाकर खड़ा हो जाता है जहां उसे होना ही नहीं था। वह उन नारों को लगाने लगता है, जिसका उससे कोई भी सरोकार नहीं है, वह उन सब नीतियों का विरोध करने लगता है जिससे उसका कोई लेना देना ही नहीं है।

इसीलिए किसी ने ठीक ही कहा है –
“कोई करता अंधभक्ति…कोई अंधविरोध
सत्ता के इस खेल में…प्यादा बना विनोद “🥺
(अज्ञात)
तभी तो यह निश्चित है कि इस ओटीटी के अरण्य में पंचायत किसी तपस्वी की कुटिया से कम नहीं है जहां रुक कर आप स्वस्थ मनोरंजन एवं आत्मिक शांति को प्राप्त कर सकते हैं और वास्तविक भारत के‌ ग्राम्य स्वरूप का दर्शन भी।