भारत में 60 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 7.4 प्रतिशत लोग अल्जाइमर से पीड़ित

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नई दिल्ली, 24 सितंबर (आईएएनएस)। अल्जाइमर रोग, जिसे ‘डिमेंशिया’ के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में व्यक्ति की एक उम्र के बाद याददाश्त में कमी होने लगती है। इस रोग से जूझ रहा मरीज अक्‍सर चीजें रखकर भूल जाता हैं। इस बारे में डॉक्‍टरों का कहना है कि उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे दिमाग के सेल्‍स कम होने लगते हैं, इससे अल्जाइमर की समस्‍या होती है।

अल्जाइमर रोग के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए आईएएनएस ने मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड में पैथोलॉजिस्ट कंसल्टेंट डॉक्‍टर भाव्या सक्सेना से बात की।

उन्‍होंने बताया, ”अल्जाइमर रोग मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को नुकसान पहुंचाने वाला रोग है, जो लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है। 2023 के अध्ययनों पर एक नजर डालें तो भारत में अल्जाइमर रोग 60 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 7.4 प्रतिशत वयस्कों को प्रभावित करता है। वैश्विक स्तर पर डिमेंशिया से पीड़ित 55 मिलियन लोगों में से अनुमानित 60 से 70 प्रतिशत लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया से पीड़ित हैं।”

उन्‍होंने कहा, ”अल्जाइमर में मस्तिष्क में कुछ परिवर्तन होते हैं। ऐसे में मस्तिष्क में प्रोटीन का जमाव होने लगता है, इससे मस्तिष्क सिकुड़ने लगता है। अगर समय से इसका इलाज न किया जाए, तो मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं और इसके गंभीर परिणाम देखने को मिलते है।”

डॉक्‍टर भाव्या ने बताया, ” इसके शुरुआती दौर में भ्रम, स्मृति हानि, काम पूरा करने में कठिनाई, दृष्टि परिवर्तन, बोलने या लिखने में परेशानी, भूलने की बीमारी जैसे लक्षण दिखाई देते है। समय के साथ इन लक्षणों के गंभीर परिणाम सामने आते है।”

डॉक्‍टर ने सलाह जारी करते हुए कहा कि अल्जाइमर रोग के गंभीर होने से पहले इसका इलाज बेहद आवश्‍यक है।

डॉक्‍टर ने कहा, ”अल्जाइमर मस्तिष्क के कार्य को बाधित होने के साथ डिहाइड्रेशन और इंफेक्शन की समस्‍या पैदा कर सकता है, जो मौत का कारण भी हो सकता है। बाजार में कई दवाएं मौजूद हैं, जो इसके लक्षणों और इसकी प्रगति को धीमा करने का काम करती है। जीवनशैली में बदलाव लाकर भी इससे बचा जा सकता है। इसके लिए ब्‍लड प्रेशर और शुगर को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। यह सभी बदलाव अल्जाइमर के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते है।”

आपको बता दें कि अल्जाइमर रोग डिमेंशिया का एक रूप माना जाता है। यह मस्तिष्क के उन हिस्सों को प्रभावित करता है , जिससे बोलने सोचने में परेशानी होती है।