विषमध्रुवीय विश्व, चीन का उदय, नया शीत युद्ध आज विश्व व्यवस्था में ला रहा बदलाव : राम माधव

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नई दिल्ली, 12 मार्च (आईएएनएस)। ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी ने एक सेमिनार आयोजित किया। इसमें इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. राम माधव ने भारत और विश्व को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि एक विषमध्रुवीय विश्व, चीन का उदय, एक नया शीत युद्ध आज बदलती विश्व व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का पतन, डॉलर में गिरावट, जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन के प्रभाव के कारण मानव विस्थापन इस सदी में नई विश्व व्यवस्था को चिह्नित करेगा।

राम माधव ने कहा, ”आज, हम देख रहे हैं कि पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव में स्पष्ट गिरावट आ रही है। पश्चिम एक बहुत शक्तिशाली गुट बना रहेगा। विशेषकर अमेरिका जैसे देश दुनिया में टेक्नोलॉजिकल लीडर्स, इकोनॉमिक लीडर्स बने रहेंगे, लेकिन अब आकार ले रही पूरी दुनिया में आपको शायद कोई एकध्रुवीयता देखने को नहीं मिलेगी। फिर चीन का उदय हुआ। आर्थिक (इकोनॉमिक) स्थिरता के संदर्भ में चीन द्वारा सामना की जा रही कुछ कंटेम्पररी चुनौतियों के बावजूद उसका स्पष्ट उत्थान इस सदी में एक महत्वपूर्ण विकास है। जीडीपी आंकड़ों के मामले में आज यह अमेरिका से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।”

उन्होंने कहा कि आज दुनिया में फ्लैशप्वाइंट की बढ़ती संख्या एक नए शीत युद्ध जैसी स्थिति का संकेत दे रही है, जिसे देश सामरिक कारणों से स्वीकार नहीं करते हैं। छोटे देशों के लीडर एक पक्ष लेने के लिए इस दबाव को महसूस करते हैं, जो खुद संकेत देता है कि दुनिया में शीत युद्ध जैसी स्थिति बढ़ रही है।

तब हम कुछ मध्य शक्तियों का उदय देखते हैं। मध्य स्तर पर मल्टीपल इंडिपेंडेंट शक्तियां बढ़ रही हैं। जब मैं मध्य शक्तियों की बात करता हूं, तो मैं केवल देशों के बारे में बात नहीं कर रहा हूं। अनेक छोटे-छोटे समूह उभर रहे हैं। वे मजबूत समूह हैं। हम जो देखते हैं उसमें शंघाई सहयोग संगठन, यूरोपीय संघ या आसियान शामिल हैं। देशों के ये छोटे समूह दुनिया में महत्वपूर्ण शक्ति गठबंधन के रूप में उभरने का प्रयास कर रहे हैं।

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति ने जेजीयू द्वारा आयोजित सेमिनार में डॉ. राम माधव का स्वागत किया और उन्हें दर्शकों से परिचित कराया। कुलपति ने कैपिटल टॉक सीरीज के तहत उद्घाटन भाषण में 15 सालों में जेजीयू के अभूतपूर्व विकास के बारे में बात की।

डॉ. माधव को रणनीतिक सोच, राजनीतिक दर्शन और भारत की विदेश नीति के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया। वह हिंद महासागर सम्मेलन, धर्म-धम्म सम्मेलन, आसियान-भारत युवा शिखर सम्मेलन और आतंकवाद विरोधी सम्मेलन जैसी प्रमुख वार्षिक विश्व और राष्ट्रीय बहुपक्षीय पहलों के क्यूरेटर रहे हैं।

हाल ही में डॉ. माधव ने जी20 के हिस्से के रूप में रिलिजन-20 फोरम (आर20) पर विचार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सबसे हालिया किताब पार्टिशन्ड फ्रीडम 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के जन्म के अनकहे इतिहास की पड़ताल करती है।

डॉ. राम माधव ने आगे कहा कि आज, बहुपक्षीय संस्थानों का पतन हो रहा है, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाए गए थे। संयुक्त राष्ट्र बहुत कम प्रभावशाली है और भारत के दृष्टिकोण से, हमने यह साफ कर दिया कि जब तक संस्थानों में महत्वपूर्ण सुधार नहीं किए जाते, वे दुनिया में कम महत्वपूर्ण बने रहेंगे। दूसरी ओर, बड़े तकनीकी कॉर्पोरेशन दुनिया में प्रमुख शक्ति प्लेयर्स के रूप में उभर रहे हैं।

इसके अलावा उन्होंने कहा कि एलन मस्क राष्ट्रों की संप्रभुता से परे इस दुनिया में कई चीजें तय कर सकते हैं। गूगल या फेसबुक और एप्पल विश्व में कई चीज़ों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए राष्ट्रों की शक्तियों से परे, ये बहुराष्ट्रीय तकनीकी ध्रुव भी बढ़ रहे हैं। रॉकफेलर फाउंडेशन जैसे विश्व गैर सरकारी संगठन बहुत शक्तिशाली हैं। अब हमारे पास बहुराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन हैं जो यह तय कर रहे हैं कि आप लड़ाई कैसे लड़ते हैं। ऐसी कई ताकतें जो उभर रही हैं, वे महत्वपूर्ण हैं।

राम माधव ने कहा, हम एक विषमध्रुवीय वास्तविकता में रह रहे हैं। हम अब बहुत बड़े तकनीकी युग में प्रवेश कर चुके हैं। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तरह एक बहुत ही फ्रंटियर टाइफ की तकनीक है। एआई हर देश के लिए एक चुनौती बनने जा रही है। हम गैर-ज़रूरी मनुष्यों और इंटेलिजेंस मशीनों के युग में प्रवेश कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन एक बहुचर्चित मुद्दा है। इस जलवायु परिवर्तन के कारण अगले 10 वर्षों में 1.2 अरब लोगों का विस्थापन होगा। कल्पना कीजिए कि इससे विशेष रूप से यूरोप के देशों पर कितना दबाव पड़ने वाला है, क्योंकि अफ्रीका और दुनिया के कई द्वीप देशों में विस्थापन होगा।

इसलिए यह बड़ा मानवीय पीड़ा का कारण बनने जा रहा है। इसके कई परिणाम होंगे जिसके लिए हमें तैयार रहने की जरूरत होगी। वहीं, डॉलर और डॉलर आधारित कारोबार का प्रभाव भी कम हो रहा है। यह घटकर 58 फीसदी पर आ गया है। इसलिए आज हम बहु-मुद्रा सिस्टम में प्रवेश कर रहे हैं। बहुत दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मजबूत राष्ट्रीय पहचान की वापसी हो रही है जो एक भूराजनीतिक वास्तविकता है।