कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के 32,000 प्राथमिक शिक्षकों को बड़ी राहत मिली है। कलकत्ता हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने उस सिंगल जज बेंच के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें इन सभी शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति रितब्रत कुमार मित्रा की डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि भले ही भर्ती प्रक्रिया में कुछ अनियमितताएं थीं, लेकिन इतने वर्षों से सेवा दे रहे 32,000 शिक्षकों की नौकरियों को एक साथ रद्द करना संभव नहीं है।
डिविजन बेंच में इस मामले की सुनवाई करीब छह महीनों तक चली। 12 नवंबर को बहस पूरी हुई थी, जिसके बाद अदालत ने आदेश सुरक्षित रख लिया था। बुधवार दोपहर यह अहम फैसला सुनाया गया।
डिवीजन बेंच ने कहा कि सभी उम्मीदवार एक जैसे नहीं हैं और जो निर्दोष हैं तथा जिनका किसी भी तरह की अनियमितता से कोई संबंध नहीं है, उन्हें सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी माना कि 32,000 शिक्षकों की नौकरी रद्द करना उनके परिवारों पर गंभीर असर डालेगा।
फैसले की विस्तृत प्रति जल्द ही हाईकोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी, जिसमें सभी टिप्पणियों का उल्लेख होगा।
पश्चिम बंगाल हायर एजुकेशन और स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट के इंचार्ज मिनिस्टर ब्रत्य बसु ने इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “आज हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले के संदर्भ में, मैं प्राइमरी एजुकेशन बोर्ड को बधाई देता हूं। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच का फैसला रद्द कर दिया गया है। 32,000 प्राइमरी स्कूल टीचरों की नौकरियां पूरी तरह सुरक्षित हैं। टीचरों को भी मेरी शुभकामनाएं। सच की जीत हुई है।”
यह पूरा विवाद 2014 में हुए टीईटी के आधार पर हुई प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती से जुड़ा है। पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड ने उस दौरान करीब 42,500 शिक्षकों की नियुक्ति की थी। कुछ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई और पैसों के बदले में नियुक्तियां कराई गईं।
इन शिकायतों पर सिंगल-बेंच में लंबी सुनवाई हुई और 12 मई 2023 को तत्कालीन जज और वर्तमान भाजपा सांसद अभिजीत गांगुली ने 32,000 शिक्षकों की नियुक्ति रद्द करने का आदेश दे दिया था।
राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ डिविजन बेंच में पहुंची। मामला पहले जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस स्मिता दास दे की बेंच के पास गया, लेकिन जस्टिस सेन ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद मामला जस्टिस चक्रवर्ती और जस्टिस मित्रा की बेंच को सौंपा गया।

