नई दिल्ली, 23 दिसंबर (आईएएनएस)। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने देश में कानून-व्यवस्था और आम नागरिकों, खासकर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता खड़ी कर दी है।
प्रेस सचिव द्वारा मीडिया संस्थानों पर हुए हिंसक हमलों के दौरान अपनी ‘बेबस स्थिति’ जाहिर करने के बाद बांग्लादेश के प्रमुख बंगाली अखबार प्रथम आलो ने सवाल उठाया, “अगर सरकार के प्रभावशाली लोग ही खुद को असहाय बता रहे हैं, तो आम लोग कहां जाएं?”
दरअसल, 19 दिसंबर को शफीकुल आलम ने अपने आधिकारिक फेसबुक अकाउंट पर लिखा कि 18 दिसंबर की रात उन्हें द डेली स्टार और प्रथम आलो के पत्रकार मित्रों के घबराए हुए फोन आए थे। उन्होंने मदद के लिए कई जगह फोन किए, लेकिन समय पर सहायता नहीं पहुंच सकी।
उन्होंने लिखा, “मुझे बेहद अफसोस है कि मैं अपने पत्रकार दोस्तों की मदद नहीं कर सका। मैंने सही लोगों को फोन किया, मदद जुटाने की कोशिश की, लेकिन वह समय पर नहीं आ सकी।”
गौरतलब है कि 18 दिसंबर की रात ढाका में इन दोनों प्रमुख मीडिया संस्थानों के दफ्तरों पर हिंसक भीड़ ने हमला किया। आलम के अनुसार, कर्मचारियों के साथ मारपीट की गई, दफ्तरों में तोड़फोड़ हुई और आगजनी भी की गई।
उन्होंने बताया कि तड़के करीब 5 बजे उन्हें यह जानकारी मिली कि द डेली स्टार में फंसे सभी पत्रकार सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए हैं, लेकिन तब तक दोनों अखबार देश के सबसे गंभीर भीड़-हमलों में से एक का सामना कर चुके थे।
पोस्ट के अंत में आलम ने लिखा, “मैं नहीं जानता कि आपको सांत्वना देने के लिए कौन से शब्द काफी होंगे। एक पूर्व पत्रकार होने के नाते मैं शर्मिंदा हूं।”
उनकी इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। एक यूजर ने लिखा कि यह हमला सीधे तौर पर राज्य की विफलता को दर्शाता है। दूसरे ने कहा, “यह सब आपकी अंतरिम सरकार के कार्यकाल में हुआ है। सुरक्षा सुनिश्चित न कर पाने की जिम्मेदारी से आप बच नहीं सकते।”
एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, “यह बेहद निराशाजनक है। पहले जरूरी कदम नहीं उठाए गए और अब नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं।”
इस बीच, प्रथम आलो ने हमले के एक दिन बाद जारी बयान में कहा कि संभावित खतरे को देखते हुए उसने पहले ही सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और संबंधित प्राधिकरणों से सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन मदद पहुंचने से पहले ही कार्यालय में तोड़फोड़ हो गई।
अखबार के अनुसार, जान बचाने के लिए पत्रकारों और कर्मचारियों को दफ्तर छोड़ना पड़ा। बाद में पुलिस और दमकल विभाग के पहुंचने पर हालात काबू में आए।
मीडिया विश्लेषक निशात सुलताना ने अपने कॉलम में सवाल उठाया कि जब सरकार का इतना जिम्मेदार और प्रभावशाली प्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से अपनी असहायता जता रहा है, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
उन्होंने लिखा कि शुरुआत से ही अंतरिम सरकार अपराध पर नियंत्रण और आपात हालात से निपटने में असफल रही है, जिसके चलते कानून हाथ में लेने वाली ताकतें बार-बार हावी होती रही हैं।

