17 सितंबर : रियो ओलंपिक के अगले ही साल जब पीवी सिंधु ने कायम की थी भारतीय बैडमिंटन में नई मिसाल

0
17

नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)। पुसरला वेंकट सिंधु यानी पीवी सिंधु, जिन्होंने भारत में बैडमिंटन खेल को अगले स्तर पर पहुंचाया है। केवल मजे के लिए जीवन में पहली बार रैकेट पकड़ने वाली सिंधु ने इस खेल को इतनी गंभीरता से लिया कि वह इस खेल में दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। 17 सितंबर के दिन भी सिंधु ने वह उपलब्धि हासिल की थी जो उनसे पहले भारत में कोई नहीं कर सका था।

यह था कोरिया ओपन सुपर सीरीज जीतना और सिंधु ऐसी करने वाली पहली भारतीय शटलर थीं। कोई पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ी भी ऐसा नहीं कर सका था। सिंधु इतनी खास कैसे बनी थीं? उनको रैकेट पकड़ने की प्रेरणा कहां से मिली थी? कैसे शुरू हुआ था उनका सफर जिसने 17 सितंबर को एक और अहम मील का पत्थर पार किया था…दिलचस्प बात है कि यह सफर शुरू हुआ था मजे में।

राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल खिलाड़ियों की बेटी सिंधु ने आठ साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया था। माता-पिता ने सिंधु को वॉलीबॉल खेलने के लिए कभी दबाव नहीं डाला। सिंधु ने बचपन में बैडमिंटन के अलावा सिर्फ एक ही गेम खेला था। वह था टेनिस…वह भी सिर्फ मजे के लिए।

मजे के लिए शुरू किया बैडमिंटन कब एक शौंक बन गया था यह सिंधु को पता नहीं चला था। वह अंडर-10 स्टेट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने लगी थीं। ऐसे ही आगे के आयु वर्ग में भी उन्होंने भाग लिया और जीत हासिल की। महबूब अली सिंधु के पहले कोच थे जिन्होंने उनकी प्रतिभा देखी और उनको इस खेल को जारी रखने के लिए कहा। अभी तक बैडमिंटन सिंधु के लिए ऐसा नहीं था कि उनको जीतने में कोई असाधारण प्रयास करना पड़ा रहा था। इसका मतलब स्पष्ट था कि इस खिलाड़ी में असाधारण प्रतिभा है।

हर एक जीत उनको आगे खेलने के लिए प्रेरित करती थी। लेकिन तब मंजिल तय नहीं थी। सिंधु केवल अपने शौक को पूरा कर रही थीं और अपने रास्ते पर बढ़ती जा रही थीं। और यही बार-बार जीतने की वह प्रेरणा थी जिसने सिंधु को इस खेल में जीत के प्रति जुनूनी बना दिया था। इसके साथ पढ़ाई भी चलती रही। माता-पिता का पूरा सहयोग था। सिंधु ने पढ़ाई में अपना एमबीए पूरा किया है।

यह सिंधु के पिता थे जिन्होंने उनको यह पढ़ना सिखाया था कि उनसे अच्छा विपक्षी कैसे खेल रहा है। उसके खेल को कैसे समझा और पढ़ा जा सकता है। अपने खेल में जो कमी है उसको कैसे बेहतर किया जा सकता है। आयु वर्ग में जीतने के बाद सिंधु का सपना नेशनल लेवल पर जीत हासिल करना बन चुका था।

इसके बाद भारतीय बैडमिंटन के दिग्गज पुलेला गोपीचंद के मार्गदर्शन में, सिंधु की प्रतिभा और निखरने लगी और उन्होंने जूनियर स्तर पर कई खिताब जीतने के बाद 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला सिंगल्स में कांस्य पदक जीतकर पहली बड़ी जीत हासिल की। उसी साल उनकी टीम ने वर्ल्ड विमेंस टीम चैंपियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया था। इसके बाद वह साल आया जिसने सिंधु को घर-घर चर्चित नाम बना दिया था।

यह था रियो ओलंपिक 2016 का साल, जब सिंधु ने इतिहास रचते हुए सिल्वर मेडल जीता था। उनको फाइनल में स्पेन की कैरोलिना मारिन से हार मिली थी। यह किसी भी भारतीय द्वारा ओलंपिक में बैडमिंटन में जीता गया पहला सिल्वर मेडल था।

इसके अगले साल यानी 2017 में सिंधु ने 17 सितंबर के दिन सियोल में कोरिया ओपन सुपर सीरीज के महिला सिंगल्स फाइनल में नोजोमी ओकुहारा को हरा दिया। पीवी सिंधु कोरिया में खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनी थीं। यह उनका तीसरा सुपर सीरीज खिताब था। इस जीत में सिंधु ने अपनी उस हार का बदला भी ले लिया था जो विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में ओकुहारा से मिली थी। सिंधु ने हार का बदला लेते हुए कोरिया ओपन सुपर सीरीज का फाइनल 22-20 11-21 21-18 से जीतकर खिताब अपने नाम किया था।

इससे पहले अजय जयराम कोरिया ओपन में पहुंचने वाले पहले भारतीय थे। सिंधु जयराम से आगे निकल चुकी थीं। इस खास जीत के लिए सिंधु को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी थी। इसके बाद सिंधु टोक्यो 2020 ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीत चुकी हैं। हालांकि पेरिस ओलंपिक में उनको निराशा मिली। लेकिन जैसा की वह कहती हैं, ‘बहुत से चीजें मैंने सीखी, सीखने के लिए अभी और भी बाकी है। हर दिन एक नई शुरुआत है।’ भारतीय बैडमिंटन में पीवी सिंधु का लीजेंडरी सफर जारी है।