रानी शर्मा
दिल्ली की सियासत में आम आदमी पार्टी (AAP) की चुनावी हार ने कई सवाल खड़े किए हैं। हालांकि हार के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन कुछ मुख्य कारणों ने पार्टी की नींव हिला दी। यहां उन प्रमुख पहलुओं की पड़ताल की गई है, जिन्होंने AAP के प्रति मतदाताओं का भरोसा तोड़ा है. भ्रष्टाचार का गहरा धब्बा – ब्रांड वैल्यू का क्षरण। AAP की स्थापना ही “साफ राजनीति” के वादे के साथ हुई थी – भ्रष्टाचार मुक्त भारत का वादा किया गया था. लेकिन पार्टी के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जेल जाना, पार्टी की छवि के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। केजरीवाल के आवास “शीशमहल” को लेकर उठे सवाल भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गए। जनता ने AAP को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का चेहरा माना था, लेकिन आरोपों ने इस विश्वास को तोड़ दिया। तीन बड़े AAP नेता (सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, संदीप पाठक) जेल गए और सभी अपनी सीटें हार गए। यह साफ संदेश है कि मतदाता भ्रष्टाचार के आरोपों को नजरअंदाज नहीं कर रहे। मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी ने पार्टी को नेतृत्वविहीन कर दिया, जिससे प्रचार अभियान प्रभावित हुआ।
रणनीतिक गलतियां : केजरीवाल का इस्तीफा और ‘केयरटेकर’ CM का विवाद
फरवरी 2024 में केजरीवाल के इस्तीफे के बाद आतिशी को ‘केयरटेकर मुख्यमंत्री’ घोषित करना AAP की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल रही। यह फैसला मतदाताओं को समझाने में विफल रहा. केजरीवाल की कुर्सी खाली छोड़कर आतिशी को अंतरिम CM बनाने से जनता में भ्रम पैदा हुआ। लगा कि पार्टी पारदर्शिता के बजाय परिवारवाद या गोपनीयता की राह पर चल रही है। AAP को महिला वोटों पर मजबूत पकड़ थी, लेकिन आतिशी को अस्थायी नेता बनाकर और चुनाव में उन्हें मुख्य चेहरा नहीं बनाने से यह वर्ग नाराज हुआ। अगर पार्टी आतिशी को पूर्ण नेता घोषित करती और भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को पद से हटाती, तो शायद विश्वास बहाल हो सकता था।
फ्रीबीज़ की राजनीति, अब यह USP नहीं रही
दिल्ली में मुफ्त बिजली-पानी जैसी योजनाओं को AAP की सफलता का आधार माना जाता था, लेकिन अब यह रणनीति काम नहीं आई. सभी पार्टियों ने अपनाई ‘रेवड़ी’ कल्चर। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली का वादा किया। इसी तरह महिलाओं से सम्बंधित नकदी योजनाओं ने AAP के ‘फ्रीबीज़ मॉडल’ को सामान्य बना दिया। बजट 2024 में इनकम टैक्स स्लैब में राहत (₹12 लाख तक छूट) जैसे कदमों ने मध्यवर्ग को बीजेपी की ओर आकर्षित किया।
बीजेपी की सूक्ष्म रणनीति: RSS का जमीनी नेटवर्क
बीजेपी ने RSS के मोहल्ला-स्तरीय नेटवर्क और डिजिटल डेटा का उपयोग करके प्रत्येक वोटर तक पहुंच बनाई। इससे उन्हें जनसभाओं से परे सीधे मतदाताओं के मुद्दों को समझने में मदद मिली। PM मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार के कार्यक्रमों वोटों को एकजुट किया।
कांग्रेस का वोट कटवा देना
कम से कम 12 सीटों पर कांग्रेस को AAP से अधिक वोट मिले। उदाहरण के लिए, चांदनी चौक और कालकाजी में कांग्रेस के वोटों ने AAP की हार को निश्चित किया। बीजेपी ने कांग्रेस को मजबूत होने दिया, जिससे AAP का वोट बंटा।
आतिशी की जीत vs नेताओं की हार: क्या संकेत है?
आतिशी का विजयी होना और भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं की हार जनता के संदेश को स्पष्ट करती है. आतिशी पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं थे, इसलिए उन्हें जनता ने स्वीकार किया। केजरीवाल का ‘आम से खास’ बनना। AAP के संस्थापक को जनता ने एक बार फिर “आम आदमी” का प्रतीक मानने से इनकार कर दिया।
AAP की हार उसकी रणनीतिक अदूरदर्शिता और नैतिक पतन का परिणाम है। पार्टी को अगर पुनरुत्थान करना है, तो भ्रष्टाचार के आरोपों को गंभीरता से निपटाना होगा। महिला नेतृत्व को आगे लाकर विश्वसनीयता बहाल करनी होगी। फ्रीबीज़ के बजाय सुशासन और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना होगा। कांग्रेस के साथ गठजोड़ जैसे विकल्पों पर विचार करना होगा। जनता ने साफ कर दिया है कि वह “साफ राजनीति” के नारों को वास्तविक कार्यों के बिना नहीं खरीदेगी। AAP के पास अब यही मौका है कि वह अपनी गलतियों से सीखे और फिर से उस आम आदमी की आवाज बने, जिसके लिए उसकी स्थापना हुई थी।
(लेखिका खरीन्यूज़ की सम्पादक हैं)