यादों में ‘फिराक’ : ‘हर बार छुपा कोई, हर बार नज़र आया’ जीने वाले...
नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)। 'बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं', ये अल्फाज हैं, उर्दू के महानतम शायरों में से एक फिराक गोरखपुरी के, जिनका असली नाम रघुपति सहाय था। उन्होंने अपनी गजलों, नज्मों और रुबाइयों से उर्दू शायरी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने अपनी लेखनी से इश्क, जीवन और भावनाओं को इतनी खूबसूरती के साथ पिरोया कि वह अपने दौर के मशहूर शायरों में शुमार हो गए।
भारतीय ज्ञान परंपरा का अंतिम लक्ष्य ब्रह्मज्ञान तक पहुँचना – संतोष चौबे
भोपाल : 22 अगस्त/ रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल में मानविकी एवं उदार कला संकाय तथा संस्कृत प्राच्य भाषा एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के...
‘वैष्णव की फिसलन’, परसाई की कृति जो आज भी समाज को आईना दिखाती है
नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। आज के दौर में लोग अपने अंदर की कमी को दूर करने से ज्यादा दूसरों में कमी ढूंढने की तलाश में रहते हैं। लोगों को सोच ऐसी हो गई है कि उन्हें लगता है कि वह जो कहते हैं, बोलते हैं वह एकदम सही है और दूसरा व्यक्ति जो कह रहा है वह गलत है उसमें सुधार की जरूरत है। हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य ‘वैष्णव की फिसलन’ उन लोगों पर सटीक बैठती है तो अपनी कमियों को छिपाने के लिए नैतिकता का मुखौटा पहन लेते हैं।
कुर्रतुलऐन हैदर : जिनकी रचना ‘आग का दरिया’ ने उर्दू साहित्य को दी नई...
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। हिंदी भाषा जहां भारतीय संस्कृति और समाज को एक सूत्र में बांधती है, तो वहीं उर्दू भाषा अपनी शायरी, नफासत और जज्बातों के साथ दिलों को जोड़ने का काम करती है। हिंदी के बाद उर्दू एक ऐसी भाषा है, जिसने देश को अनगिनत रत्न देने का काम किया है। इन्हीं रत्नों में से एक उर्दू साहित्य की अमर लेखिका कुर्रतुलऐन हैदर थीं, जिन्होंने उर्दू भाषा की इस अनूठी शक्ति को अपनी रचनाओं में न केवल जीवंत किया, बल्कि उसे विश्व साहित्य के पटल पर एक नई पहचान देने का काम किया।
वो औरत जो कभी चुप नहीं रही, कलम से किया विद्रोह; अदब, आग और...
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। जब लड़कियों को खिलौनों से खेलना सिखाया जाता था, वो गिल्ली-डंडा लेकर मैदान में उतरती थी। जब उन्हें पर्दे में रखने की हिदायत दी जाती थी, वो खुले आसमान को अपनी किताब बना लेती थी। जब समाज ने कहा कि औरत का धर्म है सहना, वो बोली-'क्यों?' वो सिर्फ लिखती नहीं थी, जीती थी, हर उस सवाल को, जिससे समाज ने आंखें मूंद रखी थीं। उसके शब्द चुप नहीं थे, उसके वाक्य झिझकते नहीं थे। उसके किरदार काल्पनिक नहीं थे, वे उन आंगनों, रसोईघरों और उन दुपट्टों के पीछे की औरतें थीं जिनकी सांसें अक्सर दबा दी जाती थीं।
स्मृति शेष : राम शरण शर्मा की ‘प्राचीन भारत’, कलम की ताकत पन्नों में...
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)। इतिहासकार और शिक्षाविद् राम शरण शर्मा की याद में दो दशक से अधिक समय बीत जाने पर भी एक घटना उनकी उदार सोच और जिज्ञासु स्वभाव की मिसाल मानी जाती है। यह घटना उनके जीवन से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है, जब उनकी कलम की ताकत को पन्नों में ही कैद कर दिया गया।
कला केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, यह समाज की आत्मा और उसकी संवेदनाओं को...
भोपाल : 19 अगस्त/ मध्यप्रदेश की कला और संस्कृति को समर्पित तीन दिवसीय आयोजन “सृजन साधना – कला प्रदर्शनी एवं चर्चा” का भव्य उद्घाटन...
ज़मीं लाल थी आसमां काला का मंचन हुआ एलबीटी में
भोपाल : 17 अगस्त/ रबीन्द्रनाथ टैगोर विष्वविद्यालय के टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के एम.ए. ड्रामाटिक्स के फाइनल इयर के विद्यार्थियों की अंतिम नाट्य प्रस्तुति...
अनामिका: हिंदी कविता का सशक्त स्वर, जो मानवीय सरोकार और स्त्री-अस्मिता को देती हैं...
नई दिल्ली, 16 अगस्त (आईएएनएस)। हिंदी कविता और साहित्य के संसार में कवयित्री अनामिका का नाम एक सशक्त और संवेदनशील स्वर के रूप में लिया जाता है। 17 अगस्त 1961 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मी अनामिका ने अपने जीवन और लेखन से न केवल कविता को एक नई दिशा दी, बल्कि स्त्री-विमर्श, सामाजिक चेतना और मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को भी अपनी रचनाओं के केंद्र में रखा। आज उनके जन्मदिन पर हिंदी जगत उन्हें स्मरण कर गौरव अनुभव करता है।
RNTU में हिन्दी छंद लेखन सर्टिफिकेट कोर्स के दो बैच सम्पन्न हुवा, प्रमाण पत्र...
भोपाल : 7 अगस्त/ छंद ही काव्य का वास्तविक स्वरूप है, आज के मंचों से जिस तरह से मूल छंदों का लोप हो रहा...
















