अंतरराष्ट्रीय हिंदी ओलम्पियाड में जुटेंगे दस लाख युवा – संतोष चौबे
भोपाल : 28 सितम्बर/ रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'हिंदी पखवाड़ा' के पुरस्कार वितरण समारोह को संबोधित करते हुए वरिष्ठ कवि–कथाकार, विश्व रंग के...
साहित्य की दादी : बिना स्कूल गए लिखी 500 से ज्यादा कविताएं, प्रतिभा को...
नई दिल्ली, 28 सितंबर (आईएएनएस)। एक महिला बिना स्कूली शिक्षा के उत्कृष्ट साहित्यकार बन जाती हैं। उनकी प्रतिभा देश-विदेश के दायरे से इतर हर तरफ फैल जाती है। यहां तक कि दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल उनके लिए डूडल समर्पित करता है। आप हैरान नहीं हों, ये कारनामा करने वाली या यूं कहें, ऐसी शख्सियत सिर्फ बालमणि अम्मा ही हो सकती हैं।
प्रतिष्ठित राष्ट्रीय ‘शताब्दी सम्मान– 2024’ से अलंकृत हुए संतोष चौबे
भोपाल : 24 सितम्बर/ श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय 'शताब्दी सम्मान–2024' श्री संतोष चौबे, वरिष्ठ कवि–कथाकार, निदेशक, विश्व रंग एवं कुलाधिपति,...
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने बाल-साहित्य को दिया बढ़ावा, ‘खूंटियों पर टंगे लोग’ के लिए...
नई दिल्ली, 22 सितंबर (आईएएनएस)। 'तुमसे अलग होकर लगता है अचानक मेरे पंख छोटे हो गए हैं, और मैं नीचे एक सीमाहीन सागर में गिरता जा रहा हूं। अब कहीं कोई यात्रा नहीं है, न अर्थमय, न अर्थहीन, गिरने और उठने के बीच कोई अंतर नहीं', हिंदी साहित्य के बेहतरीन साहित्यकारों में शुमार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने इन पंक्तियों को स्याही में पिरोने का काम काम किया। वह इस कविता के जरिए न केवल यात्रा से रूबरू कराते हैं बल्कि वह जीवन के अंतर को भी बयां करते हैं।
सिंगापुर में ‘विश्व हिंदी शिखर सम्मान–2024’ से सम्मानित हुए संतोष चौबे
भोपाल : 17 सितम्बर/ भारतीय उच्चायोग सिंगापुर और सेंटर फॉर लैंग्वेज स्टडीज, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर द्वारा 13 से 15 सितंबर तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय...
स्मृति शेष : ‘दानवीर कर्ण’ से मिली ख्याति, साहित्य की दुनिया के बने ‘मृत्युंजय’
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)। मराठी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार शिवाजी सावंत ने कई रचनाओं के जरिए अपनी खास पहचान बनाई। 18 सितंबर 2002 को आखिरी सांस लेने वाले शिवाजी सावंत ने अपनी लेखनी से पात्रों को ऐसा रचा कि सभी हमेशा के लिए अमर हो गए, पात्र भी और शिवाजी सावंत भी। उनका जन्म 31 अगस्त 1940 को हुआ था और पूरा नाम शिवाजी गोविंद राज सावंत था।
‘नास्तिक’ पेरियार जिन्होंने भेदभाव का किया विरोध, यूनेस्को ने कहा ‘दक्षिण एशिया का सुकरात’
नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)। द्रविड़ आंदोलन के जनक ई.वी. रामासामी 'पेरियार' धारा के विपरीत बहने में माहिर थे। समाज के सेट नियमों को ठेंगा दिखा, प्रचलित धारणाओं को धता-बता आगे बढ़ने में यकीन रखते थे। तार्किक आधार पर हिंदू धर्म की खामियां बताने में गुरेज नहीं किया। फटकारे गए, विरोध हुआ फिर भी जो चाहा उसे कहने से कभी हिचके नहीं। इसी पेरियार ने भविष्य की दुनिया को लेकर सपना संजोया। क्या थी वो संकल्पना? कैसा चाहते थे वह आदर्श समाज?
विश्व रंग के अंतर्गत हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में छ: विश्वविद्यालयों में ‘हिंदी पखवाड़े’...
भोपाल : 14 सितम्बर/ विश्व रंग के अंतर्गत हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र, प्रवासी भारतीय साहित्य एवं संस्कृति शोध केंद्र...
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय : पारो, चंद्रमुखी और पाठकों के ‘देवदास’, हर शब्द से जीत लिया...
नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। मशहूर फिल्म 'देवदास' का नाम किसने नहीं सुना होगा। फिल्म के तीन पात्र देवदास, पारो और चंद्रमुखी आज भी लोगों के दिलों में अमर हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म की कहानी को किसी नॉवेल से लिया गया था। इस नॉवेल को लिखने वाले का नाम है शरत चंद्र चट्टोपाध्याय। वो बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे।
सुल्तान महमूद गजनवी ने अल-बेरूनी को बनाया था कैदी, जब भारत आए तो लिख...
नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जिसकी धरती पर सैकड़ों सालों के दौरान न जाने कितने लोग आए और गए। कोई यहां की खूबसूरती और संस्कृति का कायल हुआ तो किसी ने भारत की विरासत को मिटाने की कोशिश की। लेकिन, इसके बावजूद भारत आज भी अपनी पुरानी परंपरा और रीति रिवाज को बरकरार रखे हुए हैं।