Sunday, July 6, 2025
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साहित्य

‘गुनाहों का देवता’ को गुजरे 27 बरस, एक रचनाकार जो हर चंदर और सुधा...

नई दिल्ली, 4 सितंबर (आईएएनएस)। सर्दियों की हल्की धूप में ना ठंडक और ना गर्मी का अहसास, एक पहाड़ और हर तरफ हरियाली, कानों में कोयल की कूक, सब कुछ सपनों की दुनिया जैसी... अचानक सपना टूटता है, आंखें खुलती है और नजरें किताब के पन्ने पर पड़ती है।

जानें कौन हैं हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने वाले ‘अमरनाथ झा’, शिक्षा जगत...

नई दिल्ली, 2 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदी को उसका अधिकार दिलाने का ताउम्र प्रयास करते रहे डॉ अमरनाथ झा। संस्कृत, उर्दू में महारत हासिल थी लेकिन विशेष लगाव हिंदी से था। राजभाषा आयोग के अहम सदस्य भी बनाए गए और इनकी सलाह को गंभीरता से लिया भी गया। खिचड़ी भाषा के धुर विरोधी थे।

“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं”, सत्ता के गलियारों में गूंजता था दुष्यंत...

नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”, ये रचना पढ़ते ही सबसे पहला नाम आता है दुष्यंत कुमार का। जिनकी इस कविता ने क्रांति का ऐसा जोश भरा कि हर ओर सिर्फ उन्हीं की चर्चा होती थी।

‘मैं गंगा का बेटा हूं, मैं ही लिखूंगा महाभारत’, स्क्रिप्ट लिखने से पहले राही...

नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मैं समय हूं... और आज महाभारत की कथा सुनाने जा रहा हूं’। इन शब्दों को भला कौन भूल सकता है?, 90 के दशक में हिंदुस्तान का कोई ऐसा घर नहीं होगा, जिनके यहां रविवार को ये आवाज न सुनाई दी हो। इस पौराणिक धारावाहिक को लिखा था लेखक राही मासूम रज़ा ने। उनकी स्याही से लिखे एक-एक अल्फाज का करिश्मा ऐसा था कि ‘महाभारत’ लोगों के घरों तक पहुंची। इससे पहले सिर्फ लोगों ने इसके बारे में पढ़ा था।

‘महाश्वेता’ और ‘एम सी मेहता’ एक युग प्रवर्तक तो दूसरा पर्यावरण संरक्षक कैसे इन...

नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। साल था 1997 का और भारत अपनी आजादी के 50 साल पूरे कर रहा था। इस सब के बीच भारत के दो युग प्रवर्तकों को इस साल दुनिया में खूब सुना गया। ये थे महाश्वेता देवी और एम सी मेहता। महाश्वेता देवी साहित्यकार, उपन्यासकार, निबन्धकार के साथ ही समाज में अपनी रचनाओं के जरिए एक अलग विश्वास पैदा कर चुकी थीं तो दूसरी तरफ दुनिया में पर्यावरण बचाने को लेकर उठते शोर के बीच एक और मसीहा था जो इसके संरक्षक के तौर पर उभरकर सामने आया था नाम था एम सी मेहता। दोनों को 1 सितंबर के दिन ही रेमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया।

शिवाजी सावंत: जिनके पहले ही उपन्यास ‘मृत्युंजय’ ने रचा कीर्तिमान, अंगराज कर्ण की कहानी...

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। महाभारत का कर्ण कुछ अलग ही था। सूर्य कवच और कुंडल वाला महा दानवीर जिसने जीवन में बहुत कुछ सहा। जो कुंती के परित्यक्त पुत्र ने सहा उसकी गाथा को शिवाजी सांवत ने एक उपन्यास का आकार दे दिया। मराठी कृति का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और आज भी साहित्य जगत में 'मृत्युजंय' का खास दखल है।

साहिर लुधियानवी से अधूरी मोहब्बत, जिनके प्यार में अमृता प्रीतम कहती थीं ‘यह आग...

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। ‘मैं तैनूं फ़िर मिलांगी कित्थे? किस तरह पता नई, शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के, तेरे केनवास ते उतरांगी, पर तैनूं जरुर मिलांगी’...अगर आप प्रेम करते हैं तो इस कविता से बखूबी वाकिफ होंगे, क्योंकि शब्दों के माध्यम से प्रेम को इतनी खूबसूरती से पिरोया गया है, जो भी इसे पढ़े या सुनेगा, वो इसकी प्रेम भरी दुनिया में खो जाएगा। इस कविता को लिखा था मशहूर कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार अमृता प्रीतम ने।

शख्सियत शानदार : कश्मीर के दर्द को शब्दों में समेट दुनिया के सामने रखने...

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)। इंसान आदिकाल से अपने मन की बात कहने को आतुर रहा है। इसके लिए उसने कभी चित्र बनाए, कभी कलम के भाव कागज पर रचे, तो कभी दीन-दुखियों की सेवा की। मन की व्याकुलता और संवदेनशीलता तब खूब पनपती है, जब उसे शांत और व्यवस्थित माहौल मिले। मन के ऐसे ही एक तरंग का नाम है, कश्मीरी लाल जाकिर। जिनकी कलम में दम था और समाज के लिए कुछ करने की ख्वाहिश भी खूब थी।

जयंती विशेष: भगवतीचरण वर्मा जिन्होंने पाप-पुण्य को आधार बना रच डाली ‘चित्रलेखा’

नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। ‘पाप क्या, पुण्य क्या? ’ इस भेद को जानने की कोशिश करते शिष्य विशालदेव-श्वेतांक और उनके सवालों का उत्तर देते महाप्रभु रत्नाम्बर... उपन्यास पहली पंक्ति ही पाठक को मोहपाश में बांध देती है। फिर कई पात्र आते हैं जो अंत तक पाप-पुण्य की खोज करते रहते हैं और इसी तलाश का सार है 'चित्रलेखा'। कालजयी कृति जिसकी रचना की हिंदी जगत के नामी साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा ने।

काज़ी नज़रुल इस्लाम: लेखनी में था भक्ति, प्रेम और विद्रोह का संगम, बांग्लादेश बना...

नई दिल्ली, 29 अगस्त (आईएएनएस)। भक्ति, प्रेम और विद्रोह.. भले ही ये तीनों शब्द अलग-अलग हैं, लेकिन जब इनकी बात आती है तो सबसे पहले अगर किसी का जिक्र होता है तो वह हैं काज़ी नज़रुल इस्लाम। प्रसिद्ध बांग्ला कवि, संगीत सम्राट, संगीतज्ञ और दार्शनिक काज़ी नज़रुल इस्लाम की लेखनी ऐसी थी कि उनकी स्याही से भक्ति, प्रेम और विद्रोह तीनों ही धाराओं का संगम निकलता था।

खरी बात