विनय द्विवेदी
स्वास्थ्य मंत्रीजी, अगर आपको खांसी आ रही है तो सावधान रहिएगा। आजकल सिरप का नाम सुनकर ही दिल दहल जाता है। छिंदवाड़ा के वो मासूम बच्चे तो सिरप पीकर हमेशा के लिए सो गए, जिनके सपने अभी बोतल में ही बंद थे। राजेंद्र शुक्ला जी आप स्वास्थ्य मंत्री हैं, मगर आज पूरा प्रदेश हैरान है – जब आप इतने स्वस्थ हैं तो प्रदेश का स्वास्थ्य तंत्र इतना बीमार क्यों है? क्या मध्यप्रदेश सरकार की नज़र में बच्चों की जानें सिर्फ स्टैटिस्टिक्स का आंकड़ा भर हैं?
छिंदवाड़ा के अस्पतालों में आज माताओं के आँसू हैं, बच्चों की हँसी नहीं। वहाँ खिलौने अकेले पड़े हैं, और सरकारी बयानों की भीड़ लगी है। एक माँ ने जिस बच्चे को प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भरोसा करके सिरप पिलाया, आज वह खुद अनंत काल तक जाग रही है। उसकी गोद में अब मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का सर्टिफिकेट है।
शुक्ल जी, आप मंत्री हैं मगर छिंदवाड़ा अब तक नहीं पहुँचे? क्या आपकी गाड़ी के पहिए सिर्फ चुनाव क्षेत्र में ही घूमते हैं? अगर यह हादसा रीवा में हुआ होता तो आप तो हेलिकॉप्टर को भी पीछे छोड़ देते। मगर यहाँ तो सिर्फ रोती हुई माताएँ हैं – और रोते हुए चेहरों के वोट नहीं होते। क्या स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सिर्फ बजट बनाना और प्रेस विज्ञप्ति जारी करना भर है? क्या दवाओं की गुणवत्ता पर नजर रखने वाली मशीनरी पूरी तरह फेल हो चुकी है? जाँच की बात हो रही है। मगर किसकी जाँच? मरने वाले मासूम बच्चों की गिनती की या 16 मासूम बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदारों की गिनती की? प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने आज मौके पर जाकर स्थिति देखी और भोपाल आकर कई फैसले लिए और इस सम्बन्ध में आदेश भी जारी हो गए. लेकिन दिन इतने गुजर गए हैं कि बच्चों की लाशें भी अब अपने ना होने का सबूत नहीं दे पाएंगी.
मंत्रीजी, जनता पूछ रही है – क्या आपके विभाग से सम्बंधित दफ्तरों और लैबों में दवाइयों की जाँच होती है या सिर्फ बयानों की? अगर सिरप में जहर है तो आपकी कुर्सी जरा सा भी डावाँडोल क्यों नहीं होती? मौतों का आँकड़ा बढ़ता है, बयानबाजी का पहाड़ बढ़ता है, और सरकार कहती है – “हम दुखी हैं।” असली दुख वो होता है जो बच्चे को खोने वाली माँ के चेहरे पर दिखता है, प्रेस रिलीज में नहीं मंत्री जी। छिंदवाड़ा के बच्चे “माँ” बोलना सीख रहे थे, “पापा” बोलना सीख रहे थे। “मौत” शब्द तो उन्होंने मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग की फाइलों से जाना और समझा होगा।
शुक्ल जी, यह आपकी और आपके स्वास्थ्य विभाग की परीक्षा का समय है। जब स्वास्थ्य विभाग खुद बीमार हो जाए तो लाशें ही बोलने लगती हैं। कहीं ऐसा न हो कि अगली सभा में जब आप “स्वस्थ प्रदेश” का नारा लगाएँ, तो कोई पीछे से पूछे – “मंत्रीजी, आप की बातों में या हमारे बच्चों की दवाई में, किसमें जहर है?” आज छिंदवाड़ा की माएँ सोच रही हैं – उनका गुनाह क्या था? सरकार पर भरोसा करना या डॉक्टर की बात मानना? उन्हें नहीं पता कि जब बच्चे मरते हैं तो सिर्फ जिंदगी ही नहीं, एक समाज का विश्वास भी दम तोड़ देता है।
मध्यप्रदेश सरकार को यह समझना होगा कि स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सिर्फ कागजी कार्रवाई तक सीमित नहीं है। जब तक इस पूरे सिस्टम में सुधार नहीं होता, तब तक हर सिरप और दवाई को संदेह की नजर से देखा जाएगा। अगले प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंत्री जी यह मत कहिए कि “हमने जाँच शुरू कर दी है।” बस इतना कहिए – “हमने इंसान बनने और पूरे स्वास्थ्य तंत्र को ठीक करने का फैसला कर लिया है।” क्योंकि अब सवाल सिर्फ एक सिरप का नहीं, बल्कि पूरी मध्यप्रदेश सरकार की जिम्मेदारी का है!




