तेल अवीव, 5 मई (आईएएनएस/डीपीए)। इजरायल पर हमास के अचानक हमले के सात महीने बाद गाजा पट्टी में जारी इजरायल की जवाबी कार्रवाई के बीच दुनिया में यहूदी-विरोधी भावना दूसरे विश्व युद्ध के बाद के चरम स्तर पर पहुंच गई है। रविवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
तेल अवीव यूनिवर्सिटी और अमेरिका के एंटी डिफेमेशन लीग (एडीएल) के एक संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि यदि यह प्रवृति जारी रही तो कई देशों में यहूदी सुरक्षा और स्वतंत्रता के साथ अपनी पहचान के साथ नहीं जी पायेंगे।
उदाहरण के लिए, पिछले साल अमेरिका में यहूदियों के प्रार्थना स्थलों और संस्थानों को रोजाना औसतन तीन बम की धमकियां मिलीं।
प्रोफेसर उरिया शैविट ने कहा, “यह साल 1938 जैसा नहीं है, न ही यह 1933 जैसा है। लेकिन यदि यही प्रवृति जारी रही तो पश्चिमी देशों में यहूदियों का अपनी जिंदगी जीना – यानि डेविड स्टार लगाना, यहूदी प्रार्थना घरों और सामुदायिक केंद्रों में जाना, बच्चों को यहूदी स्कूलों में भेजना, परिसर में यहूदी क्लबों में जाना या हिब्रू बोलना – असंभव हो जायेगा।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास हमले से पहले भी यहूदी-विरोधी भावना तेजी से बढ़ रही थी, लेकिन उस हमले के बाद इसकी गति नियंत्रण से बाहर हो गई है।
इसमें कहा गया है कि अमेरिका में 60 लाख यहूदी रहते हैं। पिछले साल जनवरी से सितंबर के बीच नौ महीने में 3,500 यहूदी-विरोधी घटनाएं हुई थीं। अंतिम तीन महीने में ऐसी चार हजार घटनाएं दर्ज की गईं।
दूसरे देशों में भी ऐसी ही स्थिति है। जर्मनी में जनवरी-सितंबर 2023 के दौरान यहूदी-विरोधी 1,365 घटनाएं हुई थीं जिनकी संख्या अंतिम तीन महीने में 2,249 रही।
फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और मेक्सिको से भी इन घटनाओं के बढ़ने की खबरें हैं।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यहूदी-विरोधी घटनाएं बढ़ने और गाजा पट्टी में इजरायली कार्रवाई के बीच कोई संबंध नहीं है।