कोलकाता, 28 सितंबर (आईएएनएस)। पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों की शॉटपुट एफ 57 श्रेणी में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाले नायब सूबेदार होकाटो सेमा को सम्मानित किया गया। उन्हें नागालैंड के रंग पहाड़ सैन्य स्टेशन में जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल अभिजीत एस पेंढारकर ने सम्मानित किया।
एक अधिकारी ने बताया कि इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्कूली छात्र मौजूद थे और उन्होंने सेमा से बातचीत कर उनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में जानकारी ली।
बता दें कि होकाटो होतोझे सेमा का जन्म 24 दिसंबर 1983 को दीमापुर में एक किसान परिवार में हुआ था। जीवन में उनकी महत्वाकांक्षा एक सैनिक बनने की थी और वे 17 वर्ष की आयु में असम रेजिमेंट में शामिल हो गए। साल 2001 में उन्हें जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर तैनात किया गया था। सेमा का स्पेशल फोर्स में शामिल होने का सपना एक साल बाद ही टूट गया, जब एक घुसपैठ-रोधी अभियान के दौरान बारूदी सुरंग विस्फोट में घुटने के नीचे उनका बायां पैर कट गया।
बहादुर सैनिक ने हार नहीं मानी और आर्मी पैरालंपिक नोड, बीईजी सेंटर, पुणे की मदद से शॉट पुट को खेल के रूप में अपनाया। शुरुआत में यह एक चुनौती थी, क्योंकि सेमा ने 30 साल की उम्र के बाद शुरुआत की थी, लेकिन उसने अपनी प्रतिभा दिखाना जारी रखा और पेरिस पैरालंपिक के लिए चुना गया। अपने चौथे प्रयास के दौरान, सेमा ने 14.65 मीटर की थ्रो के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और कांस्य पदक हासिल किया।
लेफ्टिनेंट जनरल पेंढारकर ने नायब सूबेदार सेमा की उपलब्धियों की सराहना की और कहा कि पूरा देश उनसे प्रेरणा लेता है। सम्मान समारोह के दौरान आर्मी पब्लिक स्कूल और केंद्रीय विद्यालय के बच्चों को नायब सूबेदार सेमा से बातचीत करने का मौका मिला। उन्होंने अपने प्रेरणादायक सफ़र के बारे में बताया और सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और लगन के महत्व पर ज़ोर दिया।
सेना की पूर्वी कमान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “वह न केवल दिव्यांगों और बच्चों के लिए बल्कि हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनकी उपलब्धि यह दर्शाती है कि अगर कोई व्यक्ति पर्याप्त प्रयास करे, तो जीवन के लक्ष्य फिर से निर्धारित किए जा सकते हैं। 40 साल की उम्र में पैरालंपिक पदक जीतना कोई मामूली बात नहीं है, सेना को उन पर गर्व है।”