नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार को कहा कि 2035 तक भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा, जिसे “भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन” के नाम से जाना जाएगा।
उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के बीच एक ऐतिहासिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के अवसर पर यह घोषणा की, जिसका उद्देश्य देश में वैज्ञानिक नवाचार के एक नए युग की शुरुआत करते हुए जैव प्रौद्योगिकी को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत करना है।
एमओयू में कई प्रमुख पहलों की रूपरेखा दी गई है, जिनमें ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ की स्थापना और ‘बायोई3’ (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति का अनावरण शामिल है।
सरकार के अनुसार, सहयोग माइक्रोग्रैविटी रिसर्च, स्पेस बायोटेक्नोलॉजी, स्पेस बायोमैन्युफैक्चरिंग, बायोएस्ट्रोनॉटिक्स और स्पेस बायोलॉजी जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित होगा।
मंत्री ने इस सहयोग को संभव बनाने के लिए इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले के प्रयासों की सराहना की।
डॉ. सिंह ने कहा, “सार्वजनिक-निजी भागीदारी भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के तीव्र विकास में सहायक रही है।”
उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष स्टार्टअप की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लगभग 300 स्टार्टअप अब अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं।
इस साझेदारी से राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम को लाभ मिलने तथा मानव स्वास्थ्य अनुसंधान, नवीन फार्मास्यूटिकल्स, पुनर्योजी चिकित्सा तथा कुशल अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण के लिए जैव-आधारित प्रौद्योगिकियों में नवाचारों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
डॉ. सिंह ने पहली बार डीएनए वैक्सीन विकसित करने में जैव प्रौद्योगिकी विभाग की भूमिका की भी सराहना की, जिससे भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं को वैश्विक मान्यता मिली।
सितंबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चंद्रमा पर चौथे मिशन को मंजूरी दी और 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) की पहली इकाई के निर्माण के लिए भी हरी झंडी दी।
सरकार ने 2035 तक एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चंद्रमा की सतह पर एक भारतीय के उतरने की परिकल्पना की थी।
इस लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए मंत्रिमंडल ने बीएएस-1 के पहले मॉड्यूल के विकास को मंजूरी दी।