मिजोरम: केले के अपशिष्ट बनेगा आजीविका का साधन, तैयार होंगे कागज समेत कई उत्पाद

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सेरछिप, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। मिजोरम के सेरछिप जिले के जुंगलेंग में गुरुवार को एक नए सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) का उद्घाटन हुआ, जो केले के छद्म तने का उपयोग कर मूल्य-वर्धित उत्पाद बनाने में मदद करेगा।

यह परियोजना उत्तर पूर्व प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं पहुंच केंद्र (एनईसीटीएआर) की आजीविका सुधार पहल का हिस्सा है, जिसे पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के फंड से वित्त पोषित किया जा रहा है।

नई प्रसंस्करण इकाई केले के छद्म तने, जो आमतौर पर कचरा समझकर फेंक दिए जाते हैं, को रेशे से बने हस्तशिल्प, शाकाहारी चमड़ा, हस्तनिर्मित कागज और वर्मीकम्पोस्ट जैसे उत्पादों में बदलने का काम करेगी। अधिकारियों का मानना है कि इससे स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा, टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन मिलेगा और ग्रामीण क्षेत्रों में नई आय के स्रोत पैदा होंगे।

हालांकि मिजोरम भारत के बड़े केला उत्पादक राज्यों में शामिल नहीं है, लेकिन यहां केला उत्पादन स्थिर रहा है। मार्च 2025 तक राज्य में केले का उत्पादन 140.502 हजार टन रहा, जो 2024 के आंकड़ों के करीब है। 2019 में यह 143.840 हजार टन तक पहुंचा था। पिछले दस साल में औसतन 140 हजार टन सालाना उत्पादन हुआ है। ये आंकड़े बताते हैं कि मिजोरम में केला उत्पादन स्थिर है, लेकिन प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन की संभावनाएं अभी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हुई हैं।

वहीं, हितधारकों को उम्मीद है कि जुंगलेंग की यह सुविधा पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि अपशिष्ट को टिकाऊ आजीविका में बदलने का मॉडल बनेगी। साथ ही यह भारत के हरित नवाचार एजेंडे को मजबूत करेगी। इस पहल से न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे।

अधिकारियों का कहना है कि यह कदम मिजोरम की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में मददगार साबित होगा। ऐसी स्थिति में अगर इसे आगे चलकर विस्तार दिया गया, तो यह हमारी आर्थिक गतिविधियों के लिए शुभ संकेत साबित हो सकता है।