RTO घोटाले पर उमा भारती का बयान: राजनीतिक भूचाल या सच्चाई का पर्दाफाश?

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रानी शर्मा

मध्य प्रदेश में आरटीओ घोटाले को लेकर राजनीति का पारा चढ़ा हुआ है। उमा भारती के बयान ने इस मुद्दे को और गरम कर दिया है। उनके शब्दों ने न केवल भ्रष्टाचार पर सवाल खड़े किए बल्कि भाजपा और सरकार की नीयत को भी कठघरे में ला दिया। घोटाले की शुरुआत तब हुई जब परिवहन विभाग के एक छोटे कर्मचारी सौरभ शर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी, सोना, और चांदी बरामद की गई। जांच एजेंसियों ने इस कार्रवाई को भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी उपलब्धि बताया। लेकिन भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने इसे ‘केंचुआ’ करार देते हुए कहा कि असली ‘अजगर’ अब भी गड्ढे में छिपा हुआ है। यह टिप्पणी महज एक बयान नहीं थी। इसमें सरकार और संगठन की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाया गया। उमा भारती ने इशारों-इशारों में स्पष्ट किया कि बड़े स्तर पर कार्रवाई रोकने के पीछे कहीं न कहीं संगठन और सरकार के शीर्ष स्तर के लोग शामिल हो सकते हैं।

जांच पर सवाल: गहराई में जाने से बचती सरकार?
आरटीओ घोटाले की जांच की गति शुरुआत में तेज थी, लेकिन जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ा, जांच की रफ्तार धीमी होती गई। यह सवाल उठता है कि जब एक छोटे कर्मचारी के पास से इतनी संपत्ति मिली है, तो उच्चाधिकारियों और राजनीतिक नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? यह मामला केवल सौरभ शर्मा तक सीमित नहीं है। जानकारों का मानना है कि यदि गहराई से जांच की जाए, तो यह घोटाला प्रदेश सरकार के कुछ बड़े नामों तक पहुंच सकता है। उमा भारती का यह कहना कि ‘खुदाई बीच में रोक दी गई है’, इस बात की ओर इशारा करता है कि गहरी जांच से बचने की कोशिश हो रही है।

भाजपा के भीतर कलह: अंदरूनी घमासान
यह घोटाला केवल भ्रष्टाचार का मामला नहीं रह गया है। यह भाजपा के भीतर चल रहे आंतरिक टकराव को भी उजागर करता है। कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और वरिष्ठ विधायक भूपेंद्र सिंह के बीच तनाव इस मामले में साफ झलकता है। गोविंद सिंह राजपूत, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाते हैं, और भूपेंद्र सिंह, जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विश्वासपात्र हैं, इस घोटाले को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने अब तक कोई सख्त कदम नहीं उठाया है। संगठन की यह खामोशी भी सवालों के घेरे में है।

विपक्ष के हमले और ‘लाल डायरी’ का जिक्र
इस मामले को विपक्ष ने जोर-शोर से उठाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने ‘लाल डायरी’ का जिक्र करते हुए दावा किया कि इसमें बड़े नेताओं के नाम दर्ज हैं, लेकिन भाजपा सरकार इसे दबाने की कोशिश कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी तीखा हमला किया। उन्होंने पूछा कि जब एक छोटे अधिकारी के पास इतनी संपत्ति है, तो परिवहन मंत्री और अन्य नेताओं के पास कितनी होगी? विपक्ष का कहना है कि सरकार ने केवल दिखावे के लिए कार्रवाई की है। अंदरूनी तौर पर मामले को ठंडे बस्ते में डालने की योजना है।

सवालों के घेरे में जांच एजेंसियां
जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले जहां कार्रवाई तेज थी, वहीं अब मामला ठहर गया है। जानकारों का मानना है कि यदि इस घोटाले की परतें खोली गईं, तो यह केवल परिवहन विभाग तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भाजपा संगठन और सरकार के बड़े नामों तक पहुंचेगा।

उमा भारती का बयान: पार्टी के लिए चेतावनी या चुनौती?
उमा भारती का बयान केवल एक आलोचना नहीं है; यह पार्टी के भीतर चल रही बेचैनी को भी दर्शाता है। उनका यह कहना कि ‘अजगर अब भी गड्ढे में है’, स्पष्ट संकेत है कि वह जांच को और गहराई तक ले जाने की मांग कर रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उमा भारती के बयान के बाद सरकार इस मामले को गंभीरता से लेगी? या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह समय के साथ भुला दिया जाएगा?

भविष्य की दिशा: क्या पकड़ा जाएगा ‘अजगर’?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जांच कभी पूरी होगी? क्या बड़े नामों पर कार्रवाई होगी? या यह मामला भी ‘हनी ट्रैप’ की तरह राजनीतिक दबाव और साजिशों में उलझकर खत्म हो जाएगा? यदि सरकार इस मामले में निष्पक्षता से कार्रवाई नहीं करती, तो इससे न केवल भाजपा की साख को नुकसान होगा, बल्कि यह विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा बन सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस घोटाले से कैसे निपटती है।

आरटीओ घोटाले ने मध्य प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। उमा भारती के बयान ने सरकार और भाजपा संगठन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला केवल भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक साजिश, आंतरिक कलह, और सत्ता के दुरुपयोग के संकेत भी मिलते हैं। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या सरकार और भाजपा संगठन इस घोटाले की तह तक जाने का साहस दिखाएंगे, या फिर इसे भी समय के साथ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। फिलहाल, यह मामला सरकार की ईमानदारी और पारदर्शिता की परीक्षा बन चुका है।