Tuesday, December 23, 2025
SGSU Advertisement

साहित्य

विश्वरंग – 2025 : भारतीय भाषाओं को आगे ले जाने का काम कर रही...

भोपाल : 14 नवंबर/ ‘आरंभ – विश्वरंग मुंबई 2025’ के दो दिवसीय आयोजन मुंबई विश्वविद्यालय के ग्रीन प्रौद्योगिकी सभागार में विविध सत्रों के साथ...

‘आरंभ – विश्वरंग मुंबई 2025’: भारतीय भाषाओं की परस्परता, सृजन और समन्वय का उत्सव

मुंबई : 13 नवंबर/ मुंबई विश्वविद्यालय के ग्रीन टेक्नोलॉजी सभागार में ‘आरंभ – विश्वरंग मुंबई 2025’ का भव्य शुभारंभ हुआ। दो दिवसीय इस आयोजन...

गजानन माधव मुक्तिबोध : प्रगतिवाद के ‘चट्टान’ से कवि, जिनकी लंबी कविताएं हिंदी साहित्य...

नई दिल्ली, 12 नवंबर (आईएएनएस)। यह कहानी है लेखनी के तेज और प्रखर विचारधारा के जीवंत साक्ष्य माने गए, गजानन माधव मुक्तिबोध की। वे आधुनिक हिंदी कविता और समीक्षा के सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व थे। प्रगतिवाद के प्रखर और मौलिक चिंतक आलोचकों में मुक्तिबोध का नाम सर्वाधिक प्रमुख है। समाज को नई दिशा देने वाली कालजयी रचनाओं के जरिए उन्होंने हमेशा जागरूक और प्रेरित किया। उनकी रचनाएं आज भी सभी के मार्गदर्शन का स्रोत हैं।

“आरंभ – विश्वरंग, मुंबई” : भारतीय भाषाओं और संस्कृतियों के संगम का अहम आयोजन...

भोपाल : 12 नवंबर/ विश्वरंग - टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव 2025 का पहला आयोजन मुंबई में “आरंभ – विश्वरंग, मुंबई” के रूप...

डेविड स्जेले को मिला बुकर प्राइज, क्यों जूरी ने माना ‘फ्लेश’ है ‘सिंगुलर अचीवमेंट’

नई दिल्ली, 11 नवंबर (आईएएनएस)। लंदन में आयोजित बुकर प्राइज 2025 समारोह में डेविड शजाले की नई उपन्यास फ्लेश को वह सम्मान मिला जिसकी अवहेलना करना मुश्किल था। जूरी ने इसे "सिंगुलर अचीवमेंट" (विलक्षण उपलब्धि) कहा—एक ऐसा उपन्यास जिसे, उनके शब्दों में, उन्होंने "पहले कभी नहीं पढ़ा।" फ्लेश को यह विशिष्ट स्थान सिर्फ उसके विषयों के कारण नहीं, बल्कि उसकी अनोखी शैली, उसकी चुप्पियों, और उसके पात्र 'इस्तवां' की उस मौजूदगी से मिला जो पन्नों के बीच होते हुए भी अज्ञात बनी रहती है।

विश्व उर्दू दिवस : हिंदी के शब्दों का श्रृंगार बनी उर्दू कैसे खुद सजी...

नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। भाषा केवल संवाद का नहीं बल्कि आपकी संवेदना और सांस्कृतिक समृद्धि का भी परिचायक है। भाषा के तौर पर आपको हमेशा यह एहसास उसमें रचे-बसे शब्दों के जरिए होता रहता है कि वह आपकी सोच और समझ को कितना प्रभावित करती है और आपके दिल को कितना छूती है। अंग्रेजी में शब्दों को एक बार गौर से देखें तो आपको पता चलेगा कि भावनाओं को व्यक्त करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है वह शब्द आपके मन में एक सपाट स्पर्श छोड़ते हैं। ऐसा हिंदी या उर्दू जैसी भाषा के शब्दों के साथ नहीं है। इसमें हर शब्द की एक अलग संवेदना और संरचना है जो गहराई तक जाकर आपके मनोभाव पर असर करती है।

विश्व उर्दू दिवस: हिंदी की माटी पर भाषा का ‘उर्दू’ वाला श्रृंगार, आखिर आज...

नई दिल्ली, 8 नवंबर (आईएएनएस)। भाषा कोई भी हो उसकी समृद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि वह भौगोलिक दृष्टि से कितने परिवेश तक सहज और सरल तरीके से प्रभाव छोड़ रही है। यही वजह है कि हिंदी और उर्दू जैसी भाषाएं अपनी सहजता और सरलता के साथ दुनिया के हर भौगोलिक क्षेत्र तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रही हैं।

हिंदी कविता के ‘एंग्री यंग मैन’ : मजदूरों की पीड़ा को शब्द देने वाले...

नई दिल्ली, 8 नवंबर (आईएएनएस)। सुदामा पांडेय 'धूमिल' की कविताएं न सिर्फ आजादी के सपनों के मोहभंग को उजागर करती हैं, बल्कि पूंजीवाद, राजनीति और आम आदमी की विवशता पर करारा प्रहार करती हैं। यही कारण है कि चालीस के दशक में जन्मे इस कवि की कविताएं आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं।

“विश्व रंग” रचनात्मक समावेशी प्रक्रिया, जिसमें कलाएं, मानव व मानवीय संवेदनाओं के पक्ष में...

संतोष चौबेवर्ष 2019 में भारत की सांस्कृतिक राजधानी भोपाल से प्रारंभ हुआ ‘विश्व रंग’ टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव अब विश्व के 65...

जौन जिंदगीनामा : लम्हों को गंवाने में उस्ताद, ‘झगड़ा क्यूं करें हम’ का सिखाया...

नई दिल्ली, 7 नवंबर (आईएएनएस)। हवा में एक उदास सिसकी घुली हुई है, जैसे कोई अधूरी गजल रुक-रुक कर सांस ले रही हो। अपनी नज्मों और नगमों से जख्मों को फूलों में बदलने वाले शायर जौन एलिया की 8 नवंबर को पुण्यतिथि है, उनको गुजरे कई बरस हो गए। हालांकि, अपनी शायरी के साथ वह अमर हैं और उसी शायरी में झलकता था, उनका जन्मभूमि अमरोहा के प्रति प्रेम और लगाव।

खरी बात